Re: मेहदी हसन :: ग़ज़ल के शहंशाह
यह नामुराद बद खबर मुझ पर इस तरह नाजिल हुई कि आसमान टूट पड़ा ! हालांकि यह कुफ्र है, लेकिन मेरे तईं वे मौसीकी के खुदा थे ! आज ग़ज़ल अनाथ हो गई, उसका सुर गुम हो गया और धड़कन थम गई ! नम आंखों की धुंधला गई रोशनी और कांपते हाथों से मैं यह टाइप कर जरूर रहा हूं, लेकिन आज मैं आप लोगों के बीच ज़्यादा देर उपस्थित नहीं रह पाऊंगा ! मुझे शहंशाहे-ग़ज़ल की आवाज़ में 'क्यूं दामने हस्ती तक बढ़ने दिया हाथों को...' सुनते हुए सुकून की तलाश करनी है, जो दरअसल लाहासिल है ! मेरी परमेश्वर से प्रार्थना है कि हसन साहब को जन्नत बख्शे ! आमीन !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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