Re: ग्रहों की दिशा कुछ प्रतिकूल दिखाई देती हैð
[QUOTE=rajnish manga;556582]'परिपक्वता के साथ ये कैसी दुर्बलता आई है' कभी कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में मन में संशय घर कर लेते हैं. इस संशयात्मक स्थिति का आपने अत्यंत सुंदर व प्रभावपूर्ण वर्णन इस कविता में किया है. कविता की उपरोक्त पंक्तियाँ [size=4]मैंने विशेष रूप से उदाहरणस्वरूप उद्धृत की हैं. धन्यवाद व शुभकामनाएं, वैभव जी.
संशय जब घर करने लगे मन में तब न मिलता कोई रास्ता इंसा को और जो व्याकुलता उसके मन में होती है उसका बखूबी वर्णन किया आपने .... बधाइयाँ किन्तु एक बात और कहना चाहूंगी इस व्याकुलता का वर्णन ही नहीं इससे उबरने के उपाय की कविता भी लिखे ताकि हमारे समाज में जो आजकल डिप्रेसन नमक बिमारी अपनी जड़ें मजबूत कर रही है उसे नेस्तनाबूद किया जा सके .
सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद
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