मेरा होना या न होना
मैं तभी भली थी
जब नहीं था मालूम मुझे
कि मेरे होने से
कुछ फर्क पड़ता है दुनिया को
कि मेरा होना, नहीं है
सिर्फ औरों के लिए
अपने लिए भी है.
मैं जी रही थी
अपने कड़वे अतीत,
कुछ सुन्दर यादों,
कुछ लिजलिजे अनुभवों के साथ
चल रही थी
सदियों से मेरे लिए बनायी गयी राह पर
बस चल रही थी ...
रास्ते में मिले कुछ अपने जैसे लोग
पढ़ने को मिलीं कुछ किताबें
कुछ बहसें , कुछ तर्क-वितर्क
और अचानक ...
अपने होने का एहसास हुआ
अब ...
मैं परेशान हूँ
हर उस बात से जो
मेरे होने की राह में रुकावट है...
हर वो औरत परेशान है
जो जान चुकी है कि वो है
पर, नहीं हो पा रही है अपनी सी
हर वो किताब ...
हर वो विचार ...
हर वो तर्क ...
दोषी है उन औरतों का
जिन्होंने जान लिया है अपने होने को
कि उन्हें होना कुछ और था
और... कुछ और बना दिया गया ..