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Originally Posted by ranveer
इस सवाल को दर्शन में " अशुभ (evil ) समस्या" ....'' पुनर्जन्म '' ...तथा '' कर्मवाद '' के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है /
ये समस्या भी कुछ उसी तरह की समस्या की श्रेणी में शामिल है जिसकी पूर्णतः व्याख्या असंभव है ( जैसे इश्वर ,आत्मा ,आदि )
पहले
आपने यहाँ पर " हिन्दू धर्म के अनुसार पाप पुण्य की व्याख्या " पर सवाल किया है तो मै सर्वप्रथम यह कहूंगा की हिन्दू धर्म पूरी तरह से ईश्वरवादी है / अगर यहाँ हिन्दू दर्शन की बात आती या भारतीय दर्शन का जिक्र होता तो मै कुछ महान लोगों के विचार प्रस्तुत कर सकता था /भारतीय दर्शन में वैसे तो चार्वाक ,बौध ,जैन ...को छोड़ दें तो बाकी " षड्दर्शन " हिन्दू दर्शन में ही आतें हैं जिनके विचारों में काफी विभिन्नता देखने को मिलती है / मगर ये षड्दर्शन हिन्दू धर्म नहीं है /
मै यहाँ कुछ विचार रख रहां हूँ पर ये विचार केवल हिन्दू धर्म के अनुसार है न की किसी दर्शन के अनुसार ( आशा करूंगा की यहाँ तक आपलोग दोनों में अंतर समझ चुके होंगे )
(1 ) हिन्दू धर्म की पहली मान्यता है की संसार में शारीरिक और मानसिक दुःख के रूप में जो अशुभ ही वह वस्तुतः मनुष्य के अपने किये गए कर्मों का ही दुष्परिणाम है /
इश्वर मनुष्य के खुद के पापो का ही समुचित दंड देने के लिए अशुभ उत्पन्न करता है ...जैसे अगर कहीं भूकंप आया तो कोई हिन्दू धार्मिक व्यक्ति यही कहेगा की धरती पर पाप का बोझ बढ़ गया अतः इश्वर को ऐसा करना पडा /
(2 ) दूसरी मान्यता है की प्राकृतिक विपदाओं से उत्पन्न अशुभ मानव के लिए एक चेतावनी है जिसके द्वारा वह अपने इश्वर की महानता और अपार शक्ति को पहचान सकता है /
यदि संसार में कोई अशुभ न हो तो कोई इश्वर की पहचान नहीं कर सकता /
(3 ) तीसरी मान्यता है की शुभ को जानने के लिए ...उसके महत्व को पहचानने के लिए अशुभ का होना अनिवार्य है /
दुःख प्राप्त करने के बाद ही हमें सुख का वास्तविक स्वरुप और महत्व पता चलता है /
जिस व्यक्ति ने स्वम अपने जीवन में कष्ट सहा हो वही एनी दुखी व्यक्तियों के प्रति सच्ची सहानुभूति रख सकता है /
उपरोक्त मान्यताओं पर सबसे गंभीर आपति यह कहकर लगाईं जाती है की नैतिक अशुभ की व्याख्या तक तो ठीक है परन्तु प्राकृतिक अशुभ में तो निर्दोष लोग भी शिकार होतें हैं ..ऐसा क्यूँ है ..क्यूँ उन बच्चों ..पशु पक्षियों को इनका सामना करना पडता है जिन्होंने कोई पाप नहीं किया है
तो यहाँ पर पुनर्जन्म के आधार पर बताने की कोशिश की जाती है की इसके लिए " आत्मा " और " पुनर्जन्म " का अस्तित्व है /
उसके पूर्वजन्म में किये गए कर्म का फल उसे इस परिणाम के रूप में भोगना पड़ता है /
यहाँ पर मै फिर कहूंगा की यह तार्किक रूप से युक्तिसंगत नहीं है
परन्तु ये समस्या किसी हिन्दू धर्म के व्यक्ति की नहीं है की वो इसकी व्याख्या करे
समस्या दार्शनिकों की हो जाती है
और इसी क्रम में षड्दर्शन सामने आतें हैं /
षड्दर्शन में सभी ने अपने अपने विचार रखें हैं
बस इतना ही
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रणवीर जी आपने भी काफ़ी अच्छी जानकारी दी है. नहीं दर्शन शास्त्र नहीं बल्कि मुझे सामान्यत जो कर्म चक्र की अवधारणा है उसके के परिप्रेक्ष्य में जवाब चाहिए था और लगता है इन घटनाओं की व्याख्या उसके माध्यम से नहीं हो सकती...