17-07-2014, 03:50 PM
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#56
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Re: यात्रा-संस्मरण
'इन्डीपेन्डेन्स डे' ''बेटा अंकल जी को ''फैनी'' तो दिखाओ '' भाभी जी ने इठलाते हुये अपने छोटे सुपुत्र से कहा। और उसके ऊपर पंखे की तरफ उंगली करने पर गौरान्वित महसूस किया।मैं ''फैनी'' माने पंखे की पहेली को छोड भाईसाहब से स्वतंत्रता दिवस के आयोजन के लिये पूछने लगा।तभी अचानक भाईसाहब के बडे क़ुलदीपक ज़ो कि कोई विदेशी चलचित्र देख रहे थे बोले ''अंकल 15 अगस्त को तो इंडिया का इंडिपेंडेंस डे होता है, जैसे कि यू एस ए का 4 जुलाई को होता है।भारत आजाद कब हुआ था ?''
आप उत्तर जानना चाहेंगे ? - कभी नहीं।
मेरे विचार में तो हम आज भी गुलाम हैं।फर्क बस इतना ही है कि तब हाथ में बेडियाँ थीं अाज विचारों में हैं। तब अंग्रेज शासन करते थे अाज अंग्रेजियत।तब शायद हम आजादी के लिये लडते भी थे पर आज तो हम दिन प्रतिदिन गुलामी की ओर बढ रहे हैं।स्वयं को हाई-क्लास कहलाने की धुन में हम ना जाने क्या क्या कर जाते हैं।हिन्दी बोलना हमारी शान के खिलाफ है और अंग्रेजी हमें आती नहीं।पर हम बोलेंगे अवश्य।नतीजा एक बडी ही बेमेल भाषा जिसे कि हिंगलिश कहने के लिये हम सभायें करते फिरते हैं।
आज हम इस स्वतंत्रता दिवस पर स्वयं आकलन करें तो पायेंगे कि ना सिर्फ भाषा बल्कि संस्कृति भी हम दूसरों से माँग कर जी रहे हैं।जब आज सारा संसार भारतीय संस्कृति जानना चाहता है तब हम भारतीय स्वयं अपनी ही संस्कृति की लुप्तता के लिये कार्य कर रहे हैं।
क्या यही आजादी है? वही आजादी जिसके लिये हमारे पूर्वज लडे थे?
आईये हम स्वतंत्रता दिवस को एक नयी परिभाषा दें। इसे विचारों और संस्कृति के स्वावलंबन से जोडें। ऌसे स्वाभिमान और हिन्दोस्तानियत से जोडें
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