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Old 05-04-2012, 10:12 PM   #17
aksh
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Default Re: कुतुबनुमा

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Originally Posted by dark saint alaick View Post
मित्र, आपकी बात अपनी जगह बिलकुल उचित है, लेकिन एक मंत्री को अपनी सदिच्छा को पूरा करके दिखाने के बजाय इस्तीफा देने को विवश करना मेरे खयाल से उचित नहीं है ! श्री दिनेश त्रिवेदी को एक मौक़ा दिया जाना चाहिए था ! यह विचारणीय है कि झूठे दावे करते हुए आपकी इस जेब में पैसा रख, उस जेब से निकालने वालों के बजाय, सीधी-साफ़ बात करने वाले लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हैं और मुझे श्री त्रिवेदी ऐसे ही इंसान लगते हैं, जो अपने दूरदर्शी क़दमों के कारण बलि की भेंट चढ़ा दिए गए ! क्या आपको पता है कि हाल ही डीजल और पेट्रोल की कीमतों में की गई कमी की कीमत आपने कहां चुकाई है ? जिस दिन यह कमी की गई ठीक उसी रात विमानों के लिए ईंधन की दरें बढ़ा दी गई अर्थात भुगतना आपको ही है, क्योंकि बहुत सी ऎसी चीजें विमानों से भी ढोई जाती हैं, जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं ! मेरा मानना है कि यदि श्री त्रिवेदी यह चाहते थे कि 'जर्जर और झुकी कमर वाली' रेल के बजाय एक बेहतर रेल जनता को चाहिए तो उसे मामूली वृद्धि से गुरेज नहीं करना चाहिए, तो यह उचित सोच थी ! आपकी प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद !
पिछले दस सालों में सार्वजनिक जीवन में मूल्यों में तेजी से गिरावट आयी है और ममता बनर्जी जैसी गरीबों की हिमायती होने का दम भरने वाले नेता खुद निरंकुश होकर शासन करना चाहते हैं...जनता की भावनाओं, जमीनी हकीकतों से इन लोगों का सरोकार नहीं रह गया है ये बात खुल कर सामने आ गयी है और इस सबसे एक बात और रेखांकित होती है कि इन लोगों का लोकतंत्र में विश्वास का दावा एक दम खोखला है क्योंकि अगर ऐसा होता तो उक्त रेल मंत्री को एक तानाशाही आदेश का पालन करने के लिए विवश ना होना पड़ता..

मैं अपने चारों तरफ देखता हूँ और यही पाता हूँ कि सत्ता का लालच विकेन्द्रीयकरण के रास्ते गाँव मोहला स्तर तक और गाँव के स्तर तक पहुँच जाने का एक नुक्सान ये हुआ है कि हर स्तर पर फैसले ढुलमुल तरीके से और वोटों की राजनीती को ध्यान में रखकर लिए जा रहे हैं...

इसी विकेन्द्रीयकरण के चलते हमारे गली और मोहल्ले अराजकता के अड्डे बन चुके हैं क्योंकि कुछ सत्ता लोलुप नेता ये चाहते हैं कि उनको सता मिलती रहनी चाहिए...फिर चाहें देश में क़ानून का राज रहे या ना रहे, देश में समता रहे या ना रहे....और सबसे बड़ी बात...देश में लोकतंत्र रहे या मरे...
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