Re: मोती और माणिक्य
खाने खाना का मकबरा
शहंशाह अकबर ने बैराम खां के बाद उनके बेटे अब्दुर रहीम खान को खाने-खाना की उपाधि प्रदान की थी जिनका मकबरा निजामुद्दीन इलाके के सामने मथुरा रोड के पूर्व में है. यह एक विशाल चौकौर इमारत है जो मेहराबी कोठरियों वाले एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है. इसमें हुमायूं के मकबरे के नमूने को अपनाया गया है. सन 1626 में मुग़ल सम्राट जहांगीर ने रहीम के मरने के बाद उसकी याद में दिल्ली में यह शानदार मकबरा बनवाया था.
सन 1956-57 में रहीम का 400 वाँ ज़ोमें-पैदाइश (चौथी जन्म-शती) मनाया जा रहा था तो भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू खाने-खाना के मकबरे को देखने गए. वह यह देख कर दंग रह गए कि इस इमारत की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. खाने-खाना के मकबरे के चारों ओर लोगों ने कब्जे कर रखे थे. उन के दिल को चोट पहुंची. उन्होंने हुक्म दिया कि मकबरे की हालत ठीक करवाई जाए और चारों ओर सफ़ाई राखी जाये. इसके बाद इमारत की मरम्मत भी कर दी गई और चारों ओर बाग़ भी लगा दिया गया. रहीम के मकबरे की दास्तान भी बहुत कुछ उनके जीवन की कहानी से मिलती जुलती है. खाने-खाना ने भी अपने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे.
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Last edited by rajnish manga; 28-02-2013 at 02:45 PM.
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