Re: डार्क सेंट की पाठशाला
किसान का खरबूज
स्वामी श्रद्धानंद एक दिन अपने कुछ शिष्यों और दर्शनार्थ आए भक्तों के साथ बैठे हुए सत्संग कर रहे थे। वहां जो भी भक्त आ रहा था, वह अपने साथ लाए फल-फूल और मिठाइयां आदि स्वामी श्रद्धानंद के चरणों में भेंट कर रहा था। स्वामी श्रद्धानंद की आदत थी कि जो भक्त फल लाता था, उसे वे वहीं कटवा कर मौजूद लोगों में बंटवा दिया करते थे। हमेशा की तरह उस दिन भी वे फल काटकर उसे प्रसाद के रूप में वहां उपस्थित लोगों को बांट रहे थे। तभी एक बुजुर्ग किसान अपने खेत का एक खरबूज लेकर आया। उसने स्वामी श्रद्धानंद से उसे खाने का अनुरोध किया। स्वामी श्रद्धानंद ने उसका अनुरोध स्वीकार कर खरबूज को काटा और उसकी एक फांक खा ली, लेकिन उस दिन उन्होंने बाकी का खरबूज बांटा नहीं, बल्कि खरबूज की एक-एक फांक काट कर खुद ही पूरा खा लिया। उनका यह व्यवहार वहां मौजूद भक्तों को थोड़ा अटपटा लगा कि आज स्वामी श्रद्धानंद ने ऐसा क्यों किया, पर वे चुप रहे। उधर वह किसान काफी खुश हुआ कि स्वामी श्रद्धानंद ने उसका पूरा खरबूज खा लिया। वह स्वामी श्रद्धानंद को प्रणाम कर वहां से चला गया। उसके जाने के बाद एक भक्त से रहा नहीं गया और उसने पूछा - स्वामी जी, क्षमा करें। एक बात पूछना चाहता हूं। जो भी भक्त आपके पास फल लाता है, आप उसके फल को प्रसाद की तरह सभी में बंटवा देते हैं, पर आपने उस किसान के खरबूज को प्रसाद की तरह काटकर क्यों नहीं बांटा? स्वामी श्रद्धानंद बोले - प्रिय भाई, अब क्या बताऊं? वह फल बहुत फीका था। अगर मैं किसी को भी बांटता, तो तय मानो वह किसी को भी पसंद नहीं आता। अगर मैं इसे आप लोगों के बीच बांटता, तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता और अगर उस किसान भाई के सामने ही इसे फीका कह देता, तो उस बेचारे का भी दिल ही टूट जाता। वह बड़े प्रेम से मेरे पास खरबूज लाया था। उसके स्नेह का सम्मान करना मेरे लिए बहुत आवश्यक था। खरबूजे में उसके स्नेह के अद्भुत मधुर रस को मैं अब तक अनुभव कर रहा हूं। यह सुनकर सभी भक्त स्वामी श्रद्धानंद के प्रति श्रद्धा से भर उठे। याद रखें, सच्चा संत वही होता है, जो किसी का दिल नहीं दुखाता।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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