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Originally Posted by soni pushpa
खुद को डुबो देते हैं नशे में ग़म में और तन्हाई में
शोरे दिल को समंदर की लहरों में लपेटे
डूबा देते हैं उसे उसी गहराई में
बचने को एक मुसीबत से उतरे हैं दूसरी खाई में
....औरों के दर्द को देखा तो हम अपनी आहें भूल गए
....वक़्त की बहती नदी है किनारे ज़िंदगी और मौत हैं
....ग़म कटे बदली हवाएं और खुशियाँ आ गईं
जब सांसे हुई पूरी और मौत ने बाहें फैलाई.
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बहुत खूब. अकेलेपन की अनुभूति हर व्यक्ति के लिये कष्टदायक होती है और टीस दे जाती है. आपने शब्दों के सुंदर प्रयोग से उस अनुभव को प्रभावशाली अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. कविता को पढ़ने पर आप की गहरी सोच का सहज अनुमान हो जाता है. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.