Re: फड़णवीस जी के नाम खुला पत्र
सूखा पड़ने पर बोलना है या ओला पड़ने पर बोलना है। तूफान आने पर बोलना है या भूकंप आने पर बोलना है। चीन जाकर बोलना है या जापान जाकर बोलना है। पाकिस्तान जाकर बोलना है या तुर्कमेनिस्तान जाकर बोलना है। क्यूबा जाकर बोलना है या घाना जाकर बोलना है। दूतावास में बोलना है या संयुक्त राष्ट्र में बोलना है। मेरी लिस्ट लंबी होती जा रही है, जो लोग जय बुलवाना चाहते हैं, उन्हें जय बोलने वालों के साथ ज़ुल्म नहीं करना चाहिए। जो नहीं बोलना चाहते न बोलें लेकिन जो बोलना चाहते हैं उन्हें तो दिशानिर्देश दें कि कब-कब, कहां-कहां और कैसे-कैसे बोलना है।
आपने कहा है कि जो नहीं बोलेगा उसे यहां रहने का अधिकार नहीं है। क्या आप बतायेंगे कि नहीं बोलने वाले कहां जाकर रहेंगे। वे अपने से बाहर जायेंगे या आप भिजवाने का इंतज़ाम करेंगे। विदेश मंत्रालय से वीज़ा दिलवाकर भेजेंगे या समुद्री नाव में डालकर भेजेंगे। भारत माता की जय न बोलने वालों को भिजवाने के लिए आपने अभी तक किन किन मुल्कों की पहचान की है। क्या आप पार्टी फंड से भिजवायेंगे या सरकारी फंड से।
अब उनकी बात जो बोलने के लिए तैयार हैं। मुझे लगता है जो भारत माता की जय बोलना चाहते हैं उनकी आप और आपकी सरकार घोर उपेक्षा कर रही है। आप उन्हें बोलने के बदले रहने के लिए क्या क्या देंगे। मकान देंगे या दुकान देंगे। कितने लोगों को अभी तक घर दिया है ? जय बोलने वाले कितने लोगों को नौकरी दी है? आपको पता ही होगा प्रधानमंत्री अपनी हर चुनावी सभा में भारत माता की जय बोलते हैं। उनके साथ सब बोलते हैं। जब लोगों का जोश कम पड़ता है तो प्रधानमंत्री मुट्ठी भींच कर कहते हैं कि मेरे साथ ज़ोर से बोलिये। लाखों लोग उनके साथ ज़ोर से बोलते हैं। एक बंदा भी नहीं कहता कि नहीं बोलेंगे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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