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Originally Posted by ndhebar
अमोल भाई
नक़ल के लिए भी अकल चाहिए होती है
कम से इन लोगों को संगीत की इतनी समझ तो है की संगीत के विशाल समंदर से ये अनमोल मोती हमलोगों के सामने पेश कर सके
इसे चोरी नहीं इंस्पिरेशन कहते है
भाई मनुष्य स्वभावतः सौन्दर्य प्रेमी होता है, अब जो चीज सुन्दर लगती है तो आदमी उसी से प्रेरणा लेगा ना
हम तो भाई अच्छे संगीत के प्रशंशक है चाहे कहीं से उठाया हो
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नक़ल और प्रेरणा के बीच बड़ा अंतर है.
मैं सत्यजीत रॉय की
पथेर पांचाली को इतालवी फिल्म
लाद्री दी बिसिक्लेत की प्रेरणा कहूँगा नक़ल नहीं, दोनों ही विश्व सिनेमा के इतिहास की उत्कृष्ट कृति हैं.
और करीब १ ढेड साल पहले रिलीज़ हुई मिलेंगे मिलेंगे फिल्म को मैं अंग्रेजी फिल्म serendipity की कॉपी (नक़ल) कहूँगा.