Re: श्री के पी सक्सेना जी को भावभीनी श्रद्धां&
उनकी कविताओं और नाटकों में गढे. गए मुहावरे और संवाद लोगों की जुबान पर चढ. गए. किसी के मरने पर उनका 'बेचारे खर्च हो गए' का मुहावरा खासा लोकप्रिय हुआ. इसके अलावा 'बहुत अच्छे', 'लपझप' और 'जीते रहिये' जैसे संवाद खूब इस्तेमाल किए जाने लगे. अकसर केपी नए-नए मुहाबरे गढते थे. जैसे 'स्वदेश' फिल्म का संवाद 'अपने ही पानी में पिघलना बर्फ का मुकद्दर होता है'. इसी फिल्म में कुंआरे चरित्र के लिए कहा गया था, ''भइया ए कब तक चारपाई के दोनों तरफ से उठते रहोगे.'' लखनऊ। 31 अक्तूबर (ब्यूरो)
'लगान' और 'जोधा अकबर' जैसी सफल फिल्मों के संवाद लेखक और मशहूर व्यंग्यकार पद्मश्री के.पी. सक्सेना का आज यहां लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वे 81 वर्ष के थे. सक्सेना दुर्लभ जीभ के कैंसर से पीड़ित थे. गत 31 अगस्त को उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने सुबह 8.30 बजे अंतिम सांस ली.
साहित्य में उनके योगदान के लिए केंद्र सरकार ने 2000 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा. उन्होंने लगान (2001), स्वदेश (2004), जोधा-अकबर (2008) जैसी सुपरहिट फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे. इनमें से 'जोधा-अकबर' बेस्ट डॉयलाग कैटेगरी में फिल्म फेयर अवार्ड के लिए नामांकित हुई. 'लगान' के संवादों में उन्होंने अवधी के अलावा भोजपुरी, ब्रजभाषा का भी प्रयोग किया.
'बाप रे बाप' : सक्सेना के जीभ की दो बार सर्जरी हो चुकी थी. पहली बार जुलाई 2012 में और दूसरी बार मार्च 2013 में. लेकिन, अगस्त में उनकी जीभ में फिर से ग्रंथि का पता चला. वे यहां क्रिश्चियन कालेज में व्याख्याता थे. उन्होंने ग्रेजुएट क्लासेज के लिए बॉटनी विषय पर 12 से ज्यादा किताबें लिखी हैं......
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Last edited by Dr.Shree Vijay; 01-11-2013 at 02:54 PM.
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