Re: !! प्रसिद्द हिंदी कहानियाँ !!
मैंने उसे छुड़ाते हुए कहा, 'प्रीतो, घर में मेहमान हैं। आओ, अंदर चलो।'
उसे बिठाकर मैंने बच्चों को दूध और बिस्कुट दिए। उन्हें खाता छोड़कर प्रीतो मेरे पीछे-पीछे आ गई। बगैर भूमिका बाँधे उसने कहा --
'दीदी, वो चला गया है। दुबई। घर भी किसी और को दे गया। सिर्फ़ आज रात मुझे रह लेने दो।'
मैंने कहा, 'प्रीतो, ये मेहमान आज भी आए हैं। तुम्हें कहाँ सुलाऊँगी। फिर बच्चे भी हैं।'
प्रीतो ने कहा, 'इन्हें लेकर मैं बरामदे में सो जाऊँगी। कल सवेरे यहीं मैंने किसी को मिलना है। वो मेरा कोई इन्तज़ाम करने वाले हैं। मैडम मुझे किसी आश्रम में भेजना चाहती है। बस कुछ दिन की बात है।'
मेरा माथा ठनका। मैंने कहा, 'तुम मैडम के घर क्यों नहीं गईं?'
'वो कभी भी नहीं रखेगी दीदी। और फिर मैं आश्रम नहीं जाना चाहती।'
'पर क्यों?'
'अगर कभी इनका बाप आया तो?' मैंने कहा, 'अगर उसने आना होता तो जाता ही क्यों?'
उसने कहा, 'बस कुछ दिन इंतज़ार करूँगी। कुछ दिन की बात है।'
मेरी आँखों के आगे आदित्य का चेहरा घूम गया। मैडम की कही हुई बात भी याद आई। जो उन्होंने कहा था वो भी मुझे याद था। एक रात उनकी मर्ज़ी के बगैर भी रख सकती थी पर प्रीतो को ये पूछने का साहस उसमें न था कि कल कहाँ जाओगी? ये मैं जानती थी सिवाय मैडम के उसे कोई आश्रम जाने को राजी न कर सकेगा। यही एक लम्हा था, अगर मैं कमज़ोर पड़ जाती तो उसके जाने का कल ना जाने कब आता। मैंने अपने अंदर के इन्सान का गला दबाया और कहा, 'नहीं प्रीतो, यहाँ रहना मुमकिन नहीं हैं। ये लोग हमारे जेठ की लड़की देखने आए हैं। लड़की कल दिल्ली से आएगी। ऐसे नाजुक रिश्तों के दौरान मैं घर में कोई अनहोनी नहीं कर सकूँगी। तुम पैसे लो। अगर कल सवेरे यहाँ किसी को मिलना है तो टैक्सी में आ जाना। अब तुम जाओ।' मैंने उसके दोनों बच्चों को ऊँगली से लगाया। दरवाज़े के बाहर जाकर चौकीदार से टैक्सी मँगवाई और बच्चों के साथ प्रीतो को बैठते देखा। उसकी पसीने से तर हथेली में कुछ नोट खोंस दिए। टैक्सी को जाने का इंतज़ार किए बगैर घर आकर दरवाज़ा बन्द कर लिया।
ये दरवाज़ा मैंने प्रीतो के लिए बंद किया था या अपने लिए ये न जान पाई। रात-भर मुझे चौराहों के ख्वाब आते रहे। फिर कई दिन मैं दीवारों से पूछती रही, 'कल कहाँ जाओगी?'
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."
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