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Old 22-01-2015, 08:15 PM   #7
rajnish manga
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Default Re: जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल 2015 : 21 जनवरी से साहित

महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी


सन 2011 में आयोजित महोत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार ने हिंदी फ़िल्मों में गानों के गिरते स्तर पर
चिंता जताई. भारत में हिंदी फ़िल्मों के मौजूदा स्तर को लेकर जाने माने गीतकार और कवि संतुष्ट नहीं है. जयपुर में जारी साहित्य उत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार गीतों की सूरत को लेकर चिंतित नजर आए. जावेद अख़्तर तो काफ़ी तल्ख़ थे,कहने लगे तमीज़ और तहज़ीब कम हो रही है. गुलज़ार का कहना था कि जैसा समाज है वैसे ही गीत हैं. इस उत्सव में भारी भीड़ उमड़ रही है. अदब के इस मेले में साहित्य तनहा नहीं है. उसके साथ गीत संगीत,कथा वाचन, शेर-ओ-शायरी और बहुत कुछ हैं.

उत्सव में शनिवार को देसी विदेशी उपन्यास और कथा कहानियों पर चर्चा हुई तो शायर और गीतकार सिनेमा के पर्दे पर उतरे गीतों पर बहस करते रहे. इन गीतकारों ने सिनेमा के नग़मों के इतिहास, यात्रा और प्रगति पर चर्चा की. जावेद अख़्तर ने कहा कि फ़िल्मो में रोमांस और ग़म के नग़मे कम हुए है.''आप देखे ग़म के गाने हैं ही नहीं,क्या रोमांस और ग़म कम हो गए है. एक कच्चापन आ गया है. जिसकी वजह से कोमल भाव और कोमल गानों की कमी आ गई है, समाज में एक ठहराव आ गया है,ये ठीक नहीं है.'' गुलज़ार कह रहे थे कि कुछ तो तकनीक की वजह से भी हुआ है. क्योंकि फ़िल्मो के लिए अलग अलग 'फोर्मेट' आ गए है. मगर जावेद इससे सहमत नहीं थे,कहने लगे अगर ऐसा है तो फिर 'आइटम सोंग्स' पर ये लागू क्यों नहीं है.


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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)

Last edited by rajnish manga; 22-01-2015 at 08:35 PM.
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