Re: मेरी कहानियां/ आख़िरी दिन तक
दुर्घटनाएं होते होते बचीं. उसकी मानसिक दशा का सभी को भान था फिर भी कईयों ने बुरा भला कह सुनाया. कई साथी कामगारों ने उसको आराम करने की सलाह दी तथा सहानुभूति का प्रदर्शन भी किया. रामधन अच्छा कारीगर था किन्तु आज उसके ठेकेदार ने भी ऊंचा नीचा कह सुनाया. एक तो पत्नि की मौत का सदमा, उस पर ऐसे उखड़े हुए व्यवहार का आघात उसे भीतर तक बेध गया. उसका मन कटुता से भर उठा. वह इस माहौल से दूर भाग जाना चाहता था. वहां, जहाँ दो क्षण के लिए उसे शान्ति मिल सके. इस जगह तो वह घुट के मर जायेगा. कुछ सोच में और कुछ काम में समय निकल गया. इस बीच किशन दो-तीन बंद खा चुका था और उसने खेलने के लिए कुछ साथी भी यहाँ ढूंढ लिए थे.
पगार देते समय ठेकेदार ने फिर दो चार कड़वी बातें कह दीं. रामधन खुल उठा, किन्तु वह विवाद से बचाना चाहता था अतः आक्रोश को पी गया. किशन का हाथ पकड़े हुए वह मुर्दा क़दमों से सड़क पर आ गया. चौक पर पहुँच कर उसने पल भर सोचा और एक ढाबे में जा पहुंचा. किशन के लिए उसने भोजन की थाली मंगवा ली. उसकी आंतें भी सिकुड़ रही थीं लेकिन खाने की इच्छा न हुई. जाने क्यों उसे अपनी भूख और कष्ट में भी संतोष मिल रहा था.
दिन भर का थका हारा, भूखा, लक्ष्मी के वियोग से टूटा हुआ रामधन अपनी बस्ती में जाते जाते दोसरी और मुड़ गया. किशन ने आश्चर्य से अपने बापू को देखा. रामधन ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा जैसे यह उसके मूक प्रश्न का उत्तर हो.
रामधन दारू के अड्डे पर आ पहुँच. यहाँ मजदूरों द्वारा सेवन की जाने वाली सस्ती शराब जिसे यहाँ “कच्ची शराब” के नाम से पुकारा जाता था बिकती थी. काफी देर तक वह बदहवास सा ठेके के सामने खड़ा रहा. किशन भी विस्फारित नेत्रों से वहां का अजीब दृश्य देखने लगा. रामधन सहमा हुआ था, वह स्वयं यहाँ पहली बार आया था. उसे साहस न हुआ अपने बेटे के सामने दारू पीने का.उसने किशन को बाहर ही एक बंद दुकान के पायदान पर बैठा दिया और स्वयं दारू की दुकान में चला गया. एक के बाद एक चार गिलास वह एक ही सांस में पी गया. गले के नीचे उतरती कड़वी शराब उसे इसे लगी जैसे उसकी अपनी घुटन, दुखद स्मृतियाँ, लक्ष्मी की मौत से उपजे खालीपन, ठेकेदार के प्रति रोष, अभाव से पैदा हुयी कुंठा आदि की समस्त पीड़ा उसके गले से नीचे उतर रही हो.
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