Re: विभाजन कथा: टोबा टेक सिंह
फज़लदीन ने फिर कहना शुरू किया, "उन्होंने मुझे कहा था कि तुम्हारी ख़ैर-ख़ैरियत पूछता रहूँ, अब मैंने सुना है कि तुम हिंदुस्तान जा रहे हो, भाई बलबीर सिंह और भाई वधावा सिंह से मेरा सलाम कहना और बहन अमृतकौर से भी, भाई बलबीर से कहना कि फज़लदीन राजीखुशी है, दो भूरी भैंसे जो वह छोड़ गए थे, उनमें से एक ने कट्टा दिया है, दूसरी के कट्टी हुई थी, पर वह छ: दिन की होके मर गई और मेरे लायक जो खिदमत हो, कहना, मैं हर वक्त तैयार हूँ, और यह तुम्हारे लिए थोड़े-से मरोंडे लाया हूँ!"
बिशन सिंह ने मरोंडों की पोटली लेकर पास खड़े सिपाही के हवाले कर दी और फज़लदीन से पूछा, "टोबा टेक सिंह कहाँ है?"
फज़लदीन ने कदरे हैरत से कहा, "कहाँ है? वहीं है, जहाँ था!"
बिशन सिंह ने फिर पूछा, "पाकिस्तान में है या हिंदुस्तान में?"
"हिंदुस्तान में, नहीं, नहीं पाकिस्तान में!" फज़लदीन बौखला-सा गया।
बिशन सिंह बड़बड़ाता हुआ चला गया, "औपड़ दि गड़ गड़ दि अनैक्स दि बेध्यानां दि मुँग दि दाल आफ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान आफ दी दुर फिटे मुँह!"
तबादले की तैयारियाँ मुकम्मल हो चुकी थीं, इधर से उधर और उधर से इधर आनेवाले पागलों की फ़ेहरिस्तें पहुँच चुकी थीं और तबादले का दिन भी मुक़र्रर हो चुका था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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