Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
फिर दोनों ने सलाह की कि इस तरह कुढ़ने और एक-दूसरे को तसल्ली देनेसे काम नहीं चलेगा। किसी तरह उसे खत्म किया जाए या बादशाह की निगाहों सेगिराया जाए तभी मन को शांति मिलेगी। फिर भी उनकी समझ में न आता कि इसके लिएक्या उपाय किया जा सकता है। यद्यपि यह ठीक बात थी कि जब वे दोनों छोटी बहनसे मिलने जातीं तो वह उनकी हैसियत का ख्याल न करती बल्कि बहनों की तरह हीअपनेपन से उनकी अभ्यर्थना किया करती थी। फिर भी उनकी हैसियत उससे नीची थीही। सभी लोग जानते थे कि वे दोनों नौकरों की स्त्रियाँ हैं और उनकी बहनरानी है। बादशाह भी अपने सेवकों की पत्नियों को क्यों खातिर में लाता।
कुछ महीनों बाद रानी को गर्भ रहा। यह सुन कर बादशाह को बड़ी खुशीहुई। अब उन दोनों ने अपनी छोटी बहन से कहा, हमें इस बात से इतनी प्रसन्नताहै कि बयान नहीं कर सकते। हम दोनों की इच्छा है कि तुम्हारी प्रसूति औरउसके चालीस दिन बाद तक तुम्हारी देखभाल पूरी तरह हमारे ही सुपुर्द हो।मलिका ने कहा, इससे अच्छा क्या हो सकता है। तुम दोनों मेरी माँ जाई हो, तुमसे बढ़ कर कौन देखभाल करेगा। तुम अपने पतियों के द्वारा यह आवेदन बादशाहके सामने करो। आशा है वे इसे स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने अपने-अपने पतियोंके द्वारा बादशाह से यह आवेदन किया तो उसने कहा कि मलिका से पूछ कर ही यहअनुमति दूँगा। उसने अपनी मलिका से पूछा तो वह खुशी से तैयार हो गई क्योंकिउसने तो पहले ही बहनों की बात मान ली थी। बादशाह ने कहा, मेरी समझ में भीयही बात ठीक रहेगी। वे कुछ भी हों, हैं तो तुम्हारी बहनें ही। गैर आदमियोंसे तो अधिक अच्छी तरह तुम्हारी देखभाल करेंगी। इस बातचीत के बाद बादशाह नेदोनों बहनों को प्रसूति के समय मलिका की देखभाल करने की अनुमति दे दी। वेदोनों महल के अंदर रहने लगीं।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|