Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बादशाह ने कहा, तुम इतना कहते हो तो उसे जान से नहीं मरवाऊँगा। लेकिन मैं सजा जरूर दूँगा और सजा भी ऐसी दूँगा जो मृत्युदंड से भी बढ़ कर कष्टकारक हो। और इस सजा के बारे में मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगा।
यह कह कर उसने शाही इमारतों के निर्माता को बुला कर कहा, जामा मसजिद के ठीक सामने एक कैदखाना बनाओ। उसका द्वार खुला रहे और मलिका को एक लकड़ी के पिंजरे में वहाँ बंद कर दिया जाय। वहाँ एक शाही फरमान लगाया जाए कि जो भी नमाज पढ़ने आए मसजिद में जाने के पहले मलिका के मुँह पर थूक कर जाए। जो आदमी ऐसा न करे उसे भी वही सजा दी जाए जो मलिका को दी जा रही है। मंत्री यह सुन कर चुप हो रहा लेकिन सोचने लगा कि मलिका को जो सजा दी जा रही है उसके योग्य तो उसकी बहनें हैं।
खैर, बादशाह ने जिस तरह कहा था उसी तरह का कैदखाना और पिंजड़ा तैयार किया गया और मलिका को उसमें रखा गया। दिन भर सैकड़ों नगर निवासी मसजिद में नमाज के लिए जाते और नमाज से पहले मलिका के मुख पर थूका करते। उन्हें इस बात का बड़ा दुख होता कि वे निर्दोष मलिका को दंडित कर रहे हैं लेकिन क्या करते, बादशाही आदेश था और दंड का भय भी। बेचारी मलिका भी ईश्वरीय इच्छा समझ कर सब कुछ सह लेती।
उसके पुत्रों और पुत्री को, जिनके जन्म से भी वह अनभिज्ञ थी, बागों का दारोगा और उसकी पत्नी बड़े प्यार और सावधानी से पाल-पोस रहे थे। तीनों बच्चों को खेलता देख कर उन दोनों को अपार हर्ष होता था। वे कुछ बड़े हुए तो दारोगा ने बड़े लड़के का नाम बहमन, छोटे लड़के का परवेज और लड़की का परीजाद रखा। जब वे लोग कुछ और बड़े हुए तो बागों के दारोगा ने उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए विद्वानों और विभिन्न कलाओं के विशेषज्ञों को नियुक्त किया। तीनों की शिक्षा एक साथ होती और परीजाद भी जो बुद्धि में अपने भाइयों से कम नहीं थी, विभिन्न विषयों में उन्हीं की भाँति पारंगत हो गई। तीनों ने काव्य, इतिहास, गणित आदि सभी प्रचलित विद्याएँ सीखीं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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