17-10-2015, 10:38 PM
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Re: एक अपदान्त गीतिका/ ग़ज़ल
Quote:
Originally Posted by आकाश महेशपुरी
एक अपदान्त गीतिका/ग़ज़ल
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धन अगर जो पास है फिर, झूठ भी है सत्य,
पास जो पैसे नहीं तो, कौन किसका यार।
धर्म के ही नाम पर तो, हो रहे हैं कत्ल,
कौन कहता है दया ही, है धरम का सार।
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दिल को छू लेने वाली इस हिंदी ग़ज़ल में गहरा व मार्मिक कटाक्ष है जो लाजवाब है. धन्यवाद, आकाश जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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