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Originally Posted by pavitra
ये कैसा इश्क़ तुम्हारा है?
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तुम्हारा दिल सराय सा
हर रात मुसाफ़िर बदलता है,
रोज़ ही किसी नए चेहरे को
दिल तुम्हारा मचलता है.....
......
जब जिस्मानी बन्धन को तोड़,
रूहें आपस में बतियाएंगी
तब इश्क़ की सारी बातें तुम्हें ,
खुद ब खुद समझ आजाएंगी
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सच्चा प्यार न दिखावों में विश्वास करता है और न नित नए बदलते रहने वाले संबंधों में. वह तो संबंधों की सनातन भूमि पर अवलंबित होता है. उपरोक्त पंक्तियाँ मानव संबंधों को इसी रौशनी में देखने का एक सुंदर प्रयास है.
धन्यवाद, पवित्रा जी.