Re: ~!!आनन्दमठ!!~
कल्याणी बचपन से पुराणों का वर्णन सुनती आती थी कि देवर्षि नारद हाथों में वीणा लिए हुए आकाश पथ से भुवन-भ्रमण किया करते हैं- उसके हृदय में वही कल्पना जागरित होने लगी। मन-ही-मन वह देखने लगी- शुभ्र शरीर, शुभ्रवेश, शुभ्रकेश, शुभ्रवसन महामति महामुनि वीणा लिए हुए, चांदनी से चमकते आकाश की राह पर गाते आ रहे हैं।
हरे मुरारे! मधुकैटभारे!….
क्रमश: गीत निकट आता हुआ, और भी स्पष्ट सुनाई पड़ने लगा-
हरे मुरारे! मधुकैटभारे!….
क्रमश: और भी निकट, और भी स्पष्ट-
हरे मुरारे! मधुकैटभारे!….
अंत में कल्याणी के मस्तक पर, वनस्थली में प्रतिध्वनित होता हुआ गीत होने लगा-
हरे मुरारे! मधुकैटभारे!….
कल्याणी ने अपनी आंखें खोलीं। धुंधले अंधेरे की चांदी में उसने देखा- सामने वही शुभ्र शरीर, शुभ्रवेश, शुभ्रकेश, शुभ्रवसन ऋषिमूर्ति खड़ी है। विकृत मस्तिष्क और अर्धचेतन अवस्था में कल्याणी ने मन में सोचा– प्रणाम करूं, लेकिन सिर झुकाने से पहले ही वह फिर अचेत हो गयी और गिर पड़ी।
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