Re: ~!!आनन्दमठ!!~
इस पर ब्रह्मचारी ने संतुष्ट होकर कहा- तुम इसी देवस्थान में रहो। मैं तुम्हारे पति की खोज में जाता हूं।
बस्ती में बैठे रहने और सोचते रहने का कोई प्रतिफल न होगा- यह सोचकर महेंद्र वहां से उठे। नगर में जाकर राजपुरुषों की सहायता से स्त्री-कन्या का पता लगवाएं- यह सोचकर महेंद्र उसी तरफ चले। कुछ दूर जाकर राह में उन्होंने देखा कि कितनी ही बैलगाडि़यों को घेरकर बहुतेरे सिपाही चले आ रहे हैं।
बंगला सन् 1173 में बंगाल प्रदेश अंगरेजों के शासनाधीन नहीं हुआ था। अंगरेज उस समय बंगाल के दीवान ही थे। वे खजाने का रुपया वसूलते थे, लेकिन तब तक बंगालियों की रक्षा का भार उन्होंने अपने ऊपर लिया न था। उस समय लगान की वसूली का भार अंगरेजों पर था, और कुल सम्पत्ति की रक्षा का भार पापिष्ट, नराधम, विश्वासघातक, मनुष्य-कुलकलंक मीरजाफर पर था। मीरजाफर आत्मरक्षा में ही अक्षम था, तो बंगाल प्रदेश की रक्षा कैसे कर सकता था? मीरजाफर सिर्फ अफीम पीता था और सोता था, अंगरेज ही अपने जिम्मे का सारा कार्य करते थे। बंगाली रोते थे और कंगाल हुए जाते थे।
अत: बंगाल का कर अंगरेजों को प्राप्य था, लेकिन शासन का भार नवाब पर था। जहां-जहां अंगरेज अपने प्राप्य कर की स्वयं अदायगी कराते थे, वहां-वहां उन्होंने अपनी तरफ से कलेक्टर नियुक्त कर दिए थे। लेकिन मालगुजारी प्राप्त होने पर कलकत्ते जाती थी। जनता भूख से चाहे मर जाए, लेकिन मालगुजारी देनी ही पड़ती थी। फिर भी मालगुजारी पूरी तरह वसूल नहीं हुई थी- कारण, माता-वसुमती के बिना धन-प्रसव किए, जनता अपने पास के कैसे गढ़कर दे सकती थी? जो हो, जो कुछ प्राप्त हुआ था, उसे गाडि़यों पर लादकर सिपाहियों के पहरे में कलकत्ते भेजा जा रहा था- धन कंपनी के खजाने में जमा होता। आजकल डाकुओं का उत्पात बहुत बढ़ गया है, इसीलिए पचास सशस्त्र सिपाही गाड़ी के आगे-पीछे संगीन खड़ी किए, कतार में चल रहे थे : उनका अध्यक्ष एक गोरा था जो सबसे पीछे घोड़े पर था। गरमी की भयानकता के कारण सिपाही दिन में न चलकर रात को सफर करते थे। चलते-चलते उन गाडि़यों और सिपाहियों के कारण महेंद्र की राह रुक गई। इस तरह राह रुकी होने के कारण थोड़ी देर के लिए महेंद्र सड़क के किनारे खड़े हो गए। फिर भी सिपाहियों के शरीर से धक्का लग सकता था, और झगड़ा बचाने के ख्याल से वे कुछ हटकर जंगल के किनारे खड़े हो गए।
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