Re: ~!!आनन्दमठ!!~
भवानंद-जो राजा राज्य प्रबंध न करे, जनता-जनार्दन की सेवा न करे, वह राजा कैसे हुआ?
महेंद्र-देखता हूं, तुम लोग किसी दिन फौजी की तोपों के मुंह पर उड़ जाओगे।
भवानंद -अनेक साले सिपाहियों को देख चुका हूं, अभी आज भी तो देखा है!
महेंद्र -अच्छी तरह नहीं देखा, एक दिन देखोगे!
भवानंद -सब देख चुका हूं। एक बार से दो बार तो मनुष्य मर नहीं सकता।
महेंद्र -जान-बूझकर मरने की क्या जरूरत है?
भवानंद -महेंद्र सिंह! मेरा ख्याल था कि तुम मनुष्यों के समान मनुष्य होगे। लेकिन देखा- जैसे सब है, वैसे तुम भी हो- घी-दूध खाकर भी दम नहीं। देखो, सांप मिट्टी में अपने पेट को घसीटता हुआ चलता है- उससे बढ़कर तो शायद हीन कोई न होगा; लेकिन उसके शरीर पर भी पैर रख देने पर वह फन काढ़ लेता है। तुम लोगों का धैर्य क्या किसी तरह भी नष्ट नहीं होता? देखो, कितने देशी शहर है- मगध, मिथिला, काशी, कराची, दिल्ली, काश्मीर- उन जगहों की ऐसी दुर्दशा है? किस देश के मनुष्य भोजन के अभाव में घास खा रहे हैं? किस देश की जनता कांटें खाती है, लता-पत्ता खाती है? किस देश के मनुष्य स्यार, कुत्ते और मुर्दे खाते है? आदमी अपने संदूक में धन रखकर भी निश्चित नहीं है- सिंहासन पर शालिग्राम बैठाकर निश्चित नहीं है- घर में बहू-नौकर-मजदूरनी रखकर निश्चित नहीं है! हर देश का राजा अपनी प्रजा की दशा का, भरण-पोषण का ख्याल रखता है; हमारे देश का मुसलमान राजा क्या हमारी रक्षा कर रहा है? धर्म गया, जाति गई, मन गया- अब तो प्राणों पर बाजी आ गई है। इन नशेबाज दाड़ीवालों को बिना भगाए क्या हिंदू हिंदू रह जाएंगे?
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