Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by dr.shree vijay
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी.......
(निदा फ़ाज़ली)
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मैं फूल टांक रहा हूँ तुम्हारे जुड़े में
तुम्हारी आँख मसर्रत से झुकी जाती है
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ
ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है
(साहिर लुधियानवी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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