Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ पता है, सुनीतबा गेलै हल तोर घर, हम सब ब्यौरा ले लेलियै, की करमहीं, एक कमरा के घर मंे आदमी नै रहो है, हमहूं रह लेबै’’
बातों का यह सिलसिला जो चल निकला तो चल निकला। मन के किसी कोने में ज्वार भाटा से उठ रहा था। शायद रीना के मन में भी। दोनों पास पास थे और घड़कनों की आवाज दोनों एक दूसरे की सुन सकते थे। सांसे तेज चल रही थी। बातचीत करते हुए हकला रहे थे, बीच बीच में दोनों अटक जाते, पता नहीं क्या हुआ था कि दोनों बेचैन थे।
तभी देखा कि फुआ की छोटकी गोतनी सूप में बूंट (चना) लिए मुख्य दरवाजे से प्रवेश कर रही थी, कलेजा धक्क से कर गया। आज तो रंगे हाथ पकड़ा गया। वैसे भी मेरा फुआ के यहां रहना उन्हें तनी नहीं सोहाता था, कारण था मेरे कारण उन लोगों को फुफा की जमीन पर नजर गड़ाने में नहीं बन रही थी। सो मेरी बुराई खोजना ही उनका काम था। रीना को आहिस्ते से मैंने बता दिया "सिरायबली"। वह मेरे इतना बेचैन नहीं हुई, धुत्त कह कर मुंह बिचका दिया। सिंरायबली आई और दूसरे कमरे के पास बने जांता (आटा-चक्की) मे दाल दररने चली गई। दरअसल वह दाल के लिए ही आई थी। मतलब की वह अब यहां घंटो रहने वाली है। मैं सोंच में पड़ गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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