Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
थोड़ी देर बाद मैं उठा और कमरे से बाहर गया तथा लौट कर आया और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। पता नहीं मन में क्या सूझा। रीना वहीं मेरे पैर के करीब चौंकी पर बैठ गई और सोये हुए भतीजे को मेरे बगल में लेटा दिया। रीना का भतीजा अभी कुछ ही देर लेटा था कि वह जाग गया और रोने लगा। उसे झट से रीना ने गोद में लिया, अब दोनों की घड़कने और तेज हो गई। कमरे के बाहर वह निकल नहीं सकती थी और अंदर यह जाग गया था। बाप रे बाप , आज तो पकड़ा जाना तय है। रीना भतीजे को चुप कराने का उपक्रम कर रही थी पर बाहर दाल दररने की आवाज की वजह सिंरायवली को इसकी आवाज अभी सुनाई नहीं दी होगी, मैंने अंदाज लगाया और उस बच्चे को चुप कराने में लग गया। तरह तरह के हथकंडे अपनाया, कभी पैसा दिया, तो कभी कहीं खोज कर खिलौना, पर वह चुप होकर फिर से रोने लगता.......
इस सब के बीच, मन मौन के इन क्षणों में कई तरह के झंझावातों और ज्वारभाटों से होकर गुजर रहा था। जब वह आई तो कितने देर तक दोनों के बीच कोई नहीं था पर खामोशी ने इस एकांत पर अपना सर्वाधिकार बहुत देर तक सुरक्षित कर रखा। वह भी खामोश थी और मैं भी। मन के अंदर उठे ज्वारभाटे की लहर प्रबल थी और रह रह कर मन के चटटान पर अपनी कोमल थपेड़ों से उसे तोड़ने का प्रयास कर रही थी। देह की भाषा थपेड़ा बन सामने आया। मन के किसी कोने में देह अपनी भाषा बुलंद कर रहा था और हमदोनों इसको समझ अंदर से खुश हो रहे थे और डर रहे थे। उसके चेहरे पर छाई खामोशी को तोड़ने का उपक्रम करता हुआ पसीना झलक आया और मेरी खामोशी के एकाधिपत्य को सांसों का रफतार तोड़ रही थी। उस क्षण मन के ज्वारभाटे ने इस तरह शब्दों का रूप ले कविता में ढल गई.............
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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