Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
आज मुकेश दा नन्दनामां गांव से मुझे देखने आये थे की पढ़ता हूं या नहीं और उन्होंने मेरी पूरी क्लास ले ली। दरअसल दीदी (मां) ने उन्हें मुझे समझाने भेजा था की पटना में जाकर मेडिकल की तैयारी करवाने का सामर्थ नहीं है सो यहीं से तैयारी करे।
शाम में दोनो भाई छत पर टहल रहे थे और दिनचर्या के मुताबिक रीना भी अपने छत पर आकर बैठ गई थी और मैं नजरें बचा-बचा कर बातचीत के क्रम में बीच-बीच में रीना की ओर झांक लेता। मेरी इस हरकत को मुकेश दा भांप कर बोले-
‘‘ की हो ई कौन पढ़ाई होबो हई, बढ़िया कॉलेज ज्वाइन कलहीं हें’’।
‘‘की कहो हो कुछ समझ में नै आइलो’’ मैं झेंपता हुआ प्रतिरोध किया।
‘‘हमहूं ई कॉलेजवा में पढ़लिए हें, दाय से पेट छुपतौ’’ उ चिडैंया टूकूर टूकूर इधरे ताक रहलौ हें, के हाउ।’’
‘‘भाबहू के ऐसे बोलभो, पाप लगतो, सुनहो ने।’’ मैं ने जबाब दिया।
‘‘हो गेलई तोर पढ़ाई लिखाई।’’यहां रहके इहे सब करो हीं, जाके चाची के कहबौ।’’
छोड़ों ने, कते परवाह करबै, जे होना है, उ होतई।
मुकेशा दा ने भी वही समझा जो आमतौर पर लोग समझते है। किसी तरह से मैंने उन्हे दीदी से यह बात नहीं कहने के लिए राजी कर लिया और रीना के तरफ ईशारा किया प्रणाम करने के लिए। वह झट से दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम कर ली।
‘‘चलतै, बियाह करमहीं की मौज मस्ती’’
उनके इस सवाल के जबाब खोजने में मुझे कुछ क्षण सोंचना फिर सीना तान के कहा-
‘‘ बियाह करबै बियाह।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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