Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
अभी दस बज रहे थे और पानी उपछते उपछते हमलोगों का बुरा हाल हो गया था, यूं कहें तो किसी की हालत चलने तक की नहीं रही थी, गर्मी से घरती तप रही थी पर मन के अंदर मछली मार कर खाने का उत्साह था सो सुरज ने ही अपनी हार मान ली थी और हमलोगों ने मिलकर लगभग तीन हिस्सा पानी साफ कर दिया था और अब कादों में मछली पकड़ने का काम प्रारंभ करना था कि तभी यह बुरी खबर आई। जिस वक्त यह खबर मिली उस वक्त मैं गड्ढे के बीचों बीच बने बांध पर लेटा था क्योकि अब थोड़ी सी पानी बची थी और बांध टूटने लगा था और गर्मी से सबकी हालत खराब थी और मैं ने बांध बनाने के बजाय बांध पर लेट जाना ही श्रेष्कर समझा और मेरे शरीर के उपर से पानी उपछाने लगी थी की खबर को पा कर एकबारगी मैं उठ खड़ा हुआ और सारी मेहनत पर पानी फिर गया। दौड़े दौड़े हमलोग गांव आये, वहीं रीना के दलान पर नवीन दा का शव रखा हुआ था और बगल में उसके पिताजी स्तब्ध बैठे थे पर रीना की मां, रीना और अन्य महिलाऐं जार जार रो रही थी।
‘‘ की होलई हो, कैसे इ सब हो गेलई, नवीन दा से कल बात होलई हल ठीके हलखिन’’ मैंने बगल में खडे पप्पू से यह बात पूछी तो उसने जो जबाब दिया वह स्तब्ध करने वाला था-
‘‘मौगी के ससुराल से लाबे ले गेलई हल नै अइलै तब नींद के गोली खा कर सुत रहलै’’
‘‘बस इतनै बात हलई और अपन जिनगी खत्म कर लेलखिन’’
‘‘ हां हो, पर मौगी भी करर हलई हो, तीन बार से लाबेले जा हलखिन औ नै आबो हलई, बेचारा घरा में इहे एगो आदमीए हलई, हीरा ।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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