21-10-2014, 11:49 AM
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Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों का मुहावरा
बोली का कारोबार बहुत सारे लोग करते हैं। इस धंधा के बड़े कारोबारियों में नेता हैं, वकील भी और मदारी भी। मदारी आजकल मीडिया कहा जाताहै। यहां मीडिया का मतलब न तो ब्रोकेन न्यूज है और न ही छपास की भंडास।यहां मीडिया का मतलब राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता और एडवरटाइजिंग एजेंसियों के कॉपी राइटर होते हैं। यही ब्रोकेन न्यूज और छपास की भंडास को संचालित करते हैं। इन्होने साबित कर दिया है कि दाग अच्छे हैं।
दागी और दागदार कौन है, यह अदालत से तय होता है। अदालत की एक अच्छी बात यह है कि यह आज करे सो काल करे– इतनी जल्दी काहे को जब मुकदमा चलेगा बरसो। यह भी एक मुहावरा है। अदालत मेंदेर है, पर अंधेर नहीं। यह भी मुहावरा ही है। इस मुहावरा की वजह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश केजी बालकृष्णन का कथन है कि भारत में मुकदमों को टालते जाना आसान काम है। टाल मटोल भी मुहावरा है।
इंसाफ और कानून में बहुत फ़र्क होता है।कानून किताब में होता है। इंसाफ अदालत में होता है। अदालत में वकील होता है। किताबमें काला अक्षर भैंस बराबर होता है। भैंस का गुण कीचड़ में जाना है। इंसाफ का काम कीचड़ को धोना है।
यह और बात है कि कोयले की दलाली में हाथ काला वाले मुहावरे के कारण कीचड़ धोते धोते इंसाफ को भी कीचड़ लग जाता है। अब तो लोगों की समझ में ही नहीं आ रहा है कि इंसाफ पर लगे कीचड़ के दाग को कैसे धोएं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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