Re: मुहावरों की कहानी
अदरक का स्वाद और कुत्ता
अविनाश वाचस्पति
एक कुत्ता अदरक खाने की कोशिश कर रहा था। उसे बार बार देख रहा था। जीभ से चाट रहा था। उलट पलट रहा था पर सुलट नहीं पा रहा था। उसकी खुशबू उसे सतर्क कर रही थी। लग तो हड्डी का टुकड़ा रहा था परंतु रंग ब्राउन। शायद कृत्रिम हो आदमी ने बनाया हो। विचार मग्न उसी में पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था।
उसका मित्र एक बंदर वहां से गुजरा तो कुत्ता को अदरक से धींगा मुश्ती करते देख रूक गया। बंदर को रूकता देख कुत्ते ने जानना चाहा तो बंदर ने कहा कि यह नॉनवेज नहीं है।
कुत्ते ने पूछा पर इसका स्वाद ….
बंदर ने बतलाया मैं ही नहीं जान पाया। लगता है तुम अनपढ़ हो। इतनी शिक्षा तो ली होती। हिंदी कोर्स में एक मुहावरा बहुत प्रचलित है ‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’
तो इस समय बंदर और अदरक दोनों तुम्हारे सामने हैं। अगर कोशिश करके तुम अपने इस प्रयास में सफल हो जाते हो तो एक नया मुहावरा हिंदी जगत को मिल जाएगा 'कुत्ता ही जाने अदरक का स्वाद’।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 26-10-2014 at 03:04 PM.
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