Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बादशाह ने कहा, चिड़िया, तुझे मैं किस तरह धन्यवाद दूँ कि दुष्टों की दुष्टता और मलिका की दोषहीनता मेरे सामने स्पष्ट की और मेरे बच्चों को पहचनवाया। मैं भी बराबर सोचता था कि इन लड़कों के प्रति मन में अकारण ममता क्यों उपजती है और इनकी बातों पर नाराज क्यों नहीं हो पाता।
चिड़िया ने जो सूचना दी थी वह बादशाह ही के लिए नहीं, बहमन, परवेज और परीजाद के लिए भी नई थी। वे तीनों अपनी जगह से उठे और बादशाह के पैरों पर गिर पड़े। बादशाह ने सभी को उठा कर सीने से लगाया। चारों की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। कुछ देर बाद जब सहज स्थिति में आए तो सबने मिल कर रुचिपूर्वक भोजन किया। कुछ देर तक बातें करने के बाद बादशाह ने उनसे कहा, अब मैं महल को जाता हूँ। कल फिर आऊँगा। कल तुम लोग मेरे ही नहीं, अपनी माता के स्वागत के लिए भी तैयार रहना और इसके बाद महल में रहने के लिए भी।
महल में पहुँच कर बादशाह ने मंत्री को बुलाया। उसने उसकी सुमति की प्रशंसा की जिसके कारण मलिका की जान बची थी। फिर उसने मलिका की बहनों की दुष्टता का वर्णन किया जिन्होंने अपनी शिष्ट और सदाचारी सगी बहन के विरुद्ध ऐसा घृणित षड्यंत्र रचा था और दो राजपुत्रों और एक राजपुत्री की लगभग जान ही ले ली थी। उसने आदेश दिया कि उन दोनों को अभी वधस्थल में ले जाओ और उनके सिर उड़वा दो। वे किसी प्रकार दया की पात्र नहीं। मंत्री ने अविलंब शाही हुक्म पर कार्य किया और दोनों दुष्टों को वह दंड मिल गया जिसकी भागी वे बहुत दिनों से थीं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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