Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
फिर बादशाह जामा मसजिद के सामने उस कैदखाने में गया जहाँ उसने मलिका को सतत अप्रतिष्ठा का दंड दे कर रखा था। उसकी दुर्बलता और फटे-पुराने वस्त्र देख कर बादशाह से बर्दाश्त न हुआ और वह उसे गले लगा कर फूट-फूट कर रोने लगा। उसने मलिका को बताया कि मैंने तुम्हें जो दंड दिया उसका कारण तुम्हारी वे बहनें ही थीं जिन्हें तुमने और मैंने तुम्हारा हितचिंतक समझा था। उसने बताया कि दोनों मरवा दी गई हैं। उसने यह भी कहा कि यह सब मुझे एक अलौकिक बोलनेवाली चिड़िया से मालूम हुआ।
मलिका यह सुन कर खुशी के मारे रोने लगी। बादशाह उसे महल में लाया। उसने हम्माम किया और शाही पोशाक पहनी। रात भर महल में हँसी-खुशी होती रही। सुबह बादशाह ने मलिका को बताया कि भगवान की दया से तुम्हारे दोनों बेटे और बेटी जिंदा हैं और बड़े आराम से हैं, तुम चल कर उनसे मिलो। यह खबर सारे राज्य में फैल गई और सभी लोग उत्सव-सा मनाने लगे।
हर जगह नाच-रंग होने लगे। मलिका बादशाह के साथ इन लोगों के महल में गई। तीनों बच्चे अपनी माँ से देर तक चिपटे रहे। फिर सब ने मिल कर भोजन किया। इसके बाद बादशाह और तीनों संतानों ने मलिका को गानेवाला पेड़, सुनहरे जल का स्वयंचालित फव्वारा और मनुष्यों की भाँति बोलनेवाली चिड़िया दिखाई। मलिका को मालूम हो रहा था कि वह स्वप्न देख रही है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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