Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
उन लोगों के निवास स्थान से शाही महल तक आनेवाली सवारी को देखने के लिए सड़कों पर जबर्दस्त भीड़ हो गई। बादशाह ने सार्वजनिक समारोह का आदेश दिया और कई दिनों तक खेल-तमाशे होते रहे। बादशाह ने इतना दान दिया कि शहर में कोई व्यक्ति निर्धन नहीं रहा। बादशाह ने इसी अवसर पर बहमन को युवराज घोषित करके क्रियात्मक रूप से उसके हाथ में सारा राज्य-प्रबंध दे दिया। परवेज को उसने सेना का अधिपति बना दिया। परीजाद को अपने एक मित्र बड़े बादशाह के एकमात्र पुत्र से ब्याह दिया।
शहरजाद ने यह कहानी खत्म की तो दुनियाजाद ने कहा, बड़ी सुंदर कहानी सुनाई। अब कौन-सी कहानी सुनाओगी? शहरजाद ठंडी साँस भर कर बोली, कोई नहीं। मुझे जो भी कहानियाँ आती थीं सब खत्म हो गईं और आज जल्लाद के हाथों मेरी कहानी भी खत्म हो जाएगी।
शहरयार ने मुस्कुरा कर कहा, नहीं बेगम, तुम्हारी कही हुई कहानियाँ अमर रहेंगी और तुम्हारी उम्र लंबी होगी। तुमने कहानियाँ सुना कर मेरा ज्ञानवर्धन भी किया है और मन का मैल भी धो दिया है। मैं आज घोषणा करूँगा कि आज से मैं अपना शादी करके पत्नी को मरवाने का नियम समाप्त कर रहा हूँ।
शहरजाद उसके पैरों पर गिर पड़ी। दुनियाजाद के आँसू बहने लगे।
(समाप्त)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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