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Originally Posted by jalwa
धन्यवाद दादा.
यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही
वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए
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हम कैसे नामुराद थे जो तुम्हे ढूंढते रहे
हमने अपनी बाजू को क्यों देखा ही नहीं //
'जय' जिनसे कह रहे थे तुम्हे ढूंढ कर लायें
तुम थे उन्ही के पीछे, हमने देखा ही नहीं //