वैसे में बताना भुल गया की साबुन का नाम उसके पिता सत्यप्रकाश के नाम पर से 'प्रकाश डिटर्जन्ट सोप' रखा गया था।
दुसरे दिन जैसे ही वह साईकिल स्टेन्ड पर रखता है, उसको देख दुकानवाला खुद ही कहता है की तीन दर्जन साबुन अभी दे दो। पीछले एक दर्जन के पैसे और कुछ एडवान्स भी वह नवीन को थमा देता है। (अनुराग कश्यप के मुंह पर एक्साईटमेन्ट बढता दिखाई दे रहा था! वह होंठ दबाए मुस्कुरा रहा था) दुसरी दुकान का दुकानकार उसे कहता है की तुम्हारा साबुन बहुत अच्छा है, आज ही कुछ ग्राहक यही साबुन मांगने आए थे। उसको पांच दर्जन साबुन दे कर जब आगे की दुकान में गया तो वहां भी यही हाल था! उस दुकानदार ने तो सारे साबुन मांग लिए! नवीन ने कहा की उसे आगे भी देने है, तो वह कहता है की उन्हें ओर ला के दे दो! जब नवीन खाली थैला लिए दुकान से नीकला तो तुरंत बाजुवाले दुकानदार ने कहा के मेरा माल कहां है?
(ईस डाईलोग पर तिग्मांशु खुशी से खडे हो जाते है। अनुराग भी उसे ताली देते हुए हंसने लगता है। )
नवीन ने थोडी देर में आने का वादा कर के पसीना पोंछने लगा!!!
(अपने ड्रोअर से नोट का एक बंडल मेरे सामन रखते हुए अनुराग कहता है...यह लो टोकन। यह कहानी हमारे प्रोडक्शन की हुई। तुम चाहो तो एक टेस्ट देने के बाद खुद यह फिल्म डाईरेक्ट कर सकते हो। मैं मानो सपना देख रहा था....वैसे हां...
मैं सपना ही तो देख रहा था!)