Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
बड़ा सिम्पल सा तरीका था। उसके घर की ओर खुलने वाली मेरी खिड़की खुलती ही नहीं। कुंए से पानी लाना बंद। स्कूल जाना बंद। घर से बाहर निकलने का रास्ता बदल जाता। मैं भरसक प्रयास यह करता की उसे दिखाई न दूं और चुपके चुपके मैं छत पर टहलते उस विरहनी को देख देख इतरा रहा होता जिसे उसके प्रेमी ने शायद ठुकरा दिया हो। अंत में प्यार का ज्वाराभाटा फूट पड़ता और वह मेरे घर धमक जाती।
बुआ से पुछती। ‘‘बबलुआ नै हो की मामा।’’ बुआ तो भोली ठहरी, कह देती हां रीना बउआ यहैं हो की । तब कुछ देर बाद इधर उधर की बात कर वह मेरे कमरे मे झांकती और उसके उदास चेहरे को नजदीक से देख मैं समझ जाता कि वह दो-तीन दिनो से खाना तक नहीं खाई है। हां उसका प्रेम पत्र जरूर मिला , जिसे पढ़ कर मैं उसके दर्द को देख लेता और उसमें रीना के रोने की आवाज और उसके आंसू मुझे दिखाई दे जाते।
कैसा प्यार था। तीन चार साल बीत गए पर प्यार का इजहार का माध्यम महज प्रेम पत्र था। उसमें भी शब्द भी वैसे ही जैसा एक गांव का लड़का लिख सकता हो। हजारो गलतियां पर भाव जो उसमें होते वह हम दोनो के लिए किसी साहित्यिक प्रेम पत्र से कम कतई नहीं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 27-08-2014 at 09:45 PM.
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