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Originally Posted by teji
सफ़र मैं हूँ एक सफ़र मुझ में भी है
मैं शहर में घूमता हूँ, एक शहर मुझ में भी है
मेरे टूटे घर को हंसकर मत देख मेरे नसीब
मैं अभी टूटा नहीं हूँ, एक घर मुझ में भी है
खूब वाकिफ हूँ मैं दुनिया की हकीकत से मगर
शख्स कोई हर तरफ से बेखबर मुझ में भी है
आदमी में बढ़ रहा है दिनों दिन कैसा ज़हर
देखता मैं भी हूँ, कुछ ज़हर मुझ में भी है
वक़्त के जरुरत से कोई अछुता है नहीं
कैसे मैं इनकार कर दूं, कुछ असर मुझ में भी है
बेधड़क बेख़ौफ़ चलता हूँ बियाबान में ,मगर
आईने से सामना होने का डर मुझ में भी है .
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तेजी जी, अगर ये ख़याल आपका गढ़ा है,
तो आपका कद यकीनन काफी बड़ा है.