ऐसे लिखते थे डॉ. राही मासूम रज़ा
(उनकी पत्नी नैय्यर साहिबा के एक इंटरव्यू से)
उनके काम करने का ढंग ये था कि जैसे तीन फ़िल्मों की स्क्रिप्ट रख ली सामने। एक का लिख रहे हैं अब... फिर वहाँ से दिमाग़ का स्विच ऑफ़ किया और दूसरी स्क्रिप्ट पर काम शुरू। ऐसे लिखते थे। फ़िल्म वालों में आम चीज है कि हमारे लिए होटल में कमरा कर दीजिए तब लिखेंगे हम। मासूम का कहना था कि मैं सिर्फ़ घर में लिख सकता हू - जहाँ मुझे मेरी बीवी और बच्चों की आवाजें सुनाई देती रहें। वो कहीं होटल-वोटल में लिखते ही नहीं थे। घर पर हम लोग बात भी कर रहे हैं, बच्चे खेल भी रहे हैं, शोर मचा रहे हैं, म्यूजिक बज रहा है - जब वो स्विच ऑफ़ कर लेते थे दिमाग को- तो असर नहीं होता था उन पर। चाय-दिन में कम से कम पचास बार - जिसमें न शकर, न दूध।