Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य अपने लेखन-कक्ष में ‘ब्रेन वाश’ नामक एक नई पुस्तक लिखने में व्यस्त थे। इसी पुस्तक के आधार पर अजूबी का ‘ब्रेन वाश’ किया जाना था। उसी समय महागुप्तचर ने आकर कहा- ‘‘मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त आपसे मिलने के लिए आए हैं और अन्दर आने की अनुमति चाहते हैं।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘आने दो। कितनी बार कह चुका हूँ- मौर्य सम्राट को हमसे मिलने के लिए अनुमति लेने की कोई ज़रूरत नहीं। जब चाहें, सीधे आकर मिल सकते हैं।’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट को पता है- आजकल आप ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में बहुत व्यस्त हैं। मौर्य सम्राट के एकाएक आगमन से पुस्तक लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इसीलिए अन्दर आने की अनुमति माँगते हैं।’’
चाणक्य ने पूछा- ‘‘मौर्य सम्राट आजकल मेरी पुस्तकों में बड़ी रुचि ले रहे हैं। आखिर बात क्या है?’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट का कहना है- चाणक्य की पुस्तकों को सम्पूर्ण विश्व में बेचने से मौर्य देश को बहुत मुनाफ़ा होगा। मौर्य सम्राट कह रहे थे- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के साथ यदि ‘चाणक्य नीति’ मुफ़्त में दी जाए तो ख़रीददारों की लम्बी लाइन लग जाएगी। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ की बिक्री दस गुना बढ़कर सम्पूर्ण विश्व में बेस्टसेलर बन जाएगी।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘मनुष्य की आकांक्षाओं का कभी अन्त नहीं होता। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट बनने से पहले मूँगफली का ठेला लगाता था। सम्राट बनने के बाद हमेशा अपने मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता है!’’
बाहर खड़े मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की बात सुनकर अन्दर आते हुए कहा- ‘‘चाणक्य की जय हो! मैं तो सिर्फ़ मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता हूँ, मगर आप....’’ मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
चाणक्य ने पूछा- ‘‘मगर आप क्या? आगे बोलिए। चुप क्यों हो गए?’’
मौर्य सम्राट ने अपना मुँह बन्द रखा। चाणक्य को नाराज़ करने का मतलब था- फिर से मूँगफली का ठेला लगाना जो मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त को किसी हालत में मंजू़र नहीं था।
चाणक्य ने कहा- ‘‘मुझे पता है- आप क्या कहना चाहते हैं। आप कहना चाहते हैं- मगर आप तो विद्योत्तमा की सेनापति अजूबी से होली खेलने के लिए इतनी दूर मैसूर जा रहे हैं।’’
चाणक्य की दूरगामी बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त एक बार फिर नतमस्तक हो गया और उसने अपना सिर झुका लिया। चाणक्य ने महागुप्तचर को संदेहास्पद दृष्टि से घूरकर देखा तो महागुप्तचर दाँत दिखाकर अपना सिर खुजलाने लगा। चाणक्य का अनुमान सही निकला। अजूबी से होली खेलने के लिए मैसूर जाने वाली बात महागुप्तचर ने ही मौर्य सम्राट को बताई थी। चाणक्य ने मन ही मन में महागुप्तचर को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘हमारा कार्यक्रम व्यक्तिगत नहीं, पूर्णतया राजकीय है। विद्योत्तमा और उसकी सेनापति अजूबी के कारण मौर्य देश पर जब-तब संकट आता रहता है। इसलिए हमने निर्णय लिया है- होली खेलने के बहाने से हम इस समस्या का अन्त हमेशा के लिए कर देंगे।’’
मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘होली खेलने से समस्या का अन्त कैसे होगा?’’
चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली खेलना तो सिर्फ़ एक बहाना है। यह रंगों वाली होली नहीं, खून की होली है।’’
मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘कैसे?’’
चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली के रंग में हम इलेक्शन कमीशन वाली स्याही मिला देंगे, जो वोट डालने के समय ऊँगली में लगाई जाती है। होली खेलने के बाद अजूबी चाहे जितना रंग छुड़ाए, रंग छूटने वाला नहीं। रंग छुड़ाने के चक्कर में अजूबी अपने ही नाखून से अपना चेहरा और अपना शरीर घायल कर लेगी। इसे कहते हैं- दुश्मन के नाखून से ही दुश्मन को घायल करके लहूलुहान कर देना! चाणक्य की बुद्धिमानी का कौशल देखकर विद्योत्तमा और अजूबी भयभीत होकर मौर्य देश की ओर झाँकना तक भूल जाएँगी।’’
चाणक्य की बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त नतमस्तक होकर चाणक्य के पैरों पर लेटकर चाणक्य की जयजयकार करने लगा। चाणक्य ने मौर्य सम्राट को उठाते हुए कहा- ‘‘चलिए, उठिए। जयजयकार करने की कोई ज़रूरत नहीं।’’
मौर्य सम्राट ने खड़े होते हुए एकाएक अपना संदेह व्यक्त करते हुए पूछा- ‘‘मगर इलेक्शन कमीशन वाली स्याही खरीदने का आर्डर तो आपने अभी तक नहीं दिया?’’
चाणक्य ने दाँत पीसकर मन ही मन में मौर्य सम्राट को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से कहा- ‘‘सुना है- द्रविड़ों के देश चेन्नई में इलेक्शन कमीशन वाली स्याही बहुत अच्छी और सस्ती मिल जाती है। वहीं से ले लूँगा। आजकल आप बहुत प्रश्न पूछने लगे हैं। लगता है- आपको चाणक्य पर भरोसा नहीं रहा।’’
मौर्य सम्राट ने क्षमा माँगते हुए कहा- ‘‘अब नहीं पूछूँगा।’’ कहते हुए मौर्य सम्राट ने चाणक्य की उस पाण्डुलिपि को देख लिया जो वह लिखने में व्यस्त थे। चाणक्य की पाण्डुलिपि का शीर्षक देखकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘ब्रेन वाश? नई पुस्तक लगती है। आपने कभी बताया नहीं- आप ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ के अतिरिक्त तीसरी पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ भी लिख रहे हैं?’’
चाणक्य का बहुत मन किया कि मौर्य सम्राट का गला दबा दे, किन्तु अपनी इच्छा का बलपूर्वक दमन करते हुए चाणक्य ने अत्यधिक चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘आपने मेरी पूरी बात सुनी कहाँ? अजूबी से खूनी होली खेलने के बाद हम मैसूर महाराजा से मिलकर मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ का बहुत बड़ा आर्डर बुक करेंगे। यह पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू के प्रचार और प्रसार के लिए लिखा जा रहा है।’’
मौर्य सम्राट ने प्रसन्न होकर पूछा- ‘‘इस चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ की क्या विशेषता होगी?’’
‘ओफ़्फ़ोह! हद हो गई!! मौर्य सम्राट तो हाथ-पैर धोकर गले पड़ गया!!!’- सोचते हुए चाणक्य ने चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘सिर और चेहरे के बालों को छोड़कर शरीर में कहीं भी लगाने पर यह शैम्पू हेयर रिमूवर का काम करता है! सारे बाल जड़ से उखड़ जाते हैं और फिर कभी नहीं उगते!’’
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सन्तुष्ट होकर अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक चाणक्य की जयजयकार करता हुआ वहाँ से चला गया। मौर्य देश को मैसूर से ‘ब्रेन वाश’ शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर जो मिलने वाला था!
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