04-04-2013, 11:28 PM
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#27
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Re: इधर-उधर से
मेहदी अली के कुछ चुनिन्दा शे'र
मीठी लगी जुबां को मगर ज़हर बन गई
ये ज़िन्दगी खुदा की कसम कहर बन गई.
यह शफ़क़ बन के खिले या कफ़े क़ातिल पे जमे
खूने-मेहदी की तो फितरत है नुमायाँ होना.
है कोई इस हयात का जो मर्सिया पढ़े
मुद्दत से हम तलाश में इक नौहख्वां के हैं.
अभी है आखरी हिचकी का मरहला बाकी
खुदा के वास्ते दस्ते दुआ उठाये रखो.
नौहख्वां = स्यापा करने वाला
(शायर: मेहदी अली)
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