Re: मिथक कथा: हेलेन ऑफ़ ट्रॉय
“फिर घोड़े का क्या होगा?” – एक अन्य सैनिक ने पूछा.
“यही घोड़ा हमें विजयी बनाएगा. ट्रोजन के लोग सोचेंगे कि हम लोग हार मानकर वापस चले गए. जाते हुए एक gift छोड़ गए हैं. वे लोग निश्चित रूप से अपने इस विजय प्रतीक को अपने शहर के अन्दर ले जायेंगे. वे इसका जश्न मनाएंगे. जब वे नाचते गाते थक कर सो जायेंगे, हमारे सैनिक trojan horse से बाहर आकर टूट पड़ेंगे. उनका signal मिलते ही हमलोग वापस आकर ट्रॉय पर हमला बोल देंगे.”
“वाह! तब तो हमारी जीत पक्की है”, कई सैनिक जोश में बोले.
ग्रीक लोगों ने अपने सबसे कुशल कारीगरों को लकड़ी का एक घोड़ा बनाने में लगा दिया. लकड़ी के उस मजबूत और विशाल घोड़े में एक गुप्त दरवाजा बनाया गया कि किसी को पता न चल सके. Trojan Horse के मुँह को खुला छोड़ दिया गया ताकि उसमें छिपे सैनिक आराम से सांस ले सकें. जब घोड़ा तैयार हो गया, ग्रीकों ने उसे ट्रॉय शहर के मुख्य दरवाजे के पास छोड़ दिया और वापस लौटने का नाटक किया. अगली सुबह ट्रोजन लोगों ने युद्ध भूमि को खाली पाया. Greek कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे थे, गेट के बाहर सिर्फ विशाल ट्रोजन हॉर्स दिख रहा था.
“यह शांति का उपहार है. यूनानी चले गए.” – ट्रोजन सैनिकों ने जोर से कहा. “वे हार स्वीकार कर चले गए हैं और यह उपहार छोड़ गए हैं.” अब ग्रीक उस ट्रोजन हॉर्स को अपने विजय प्रतीक के रूप में देखने लगे. यह उनकी देवी एथेना के लिये एक उपहार है.
उनमें से कुछ ट्रोजन लोग उसे संदेह की नजर से देख रहे थे और उसे जला देना चाहते थे. लेकिन विजय का आनंद ले रहे सैनिकों ने उसकी बात का ध्यान नहीं दिया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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