Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
आज भी वह मेरी नहीं वरन पांडवों की चिंता कर रही है। बड़ी भोली हैं। मैं पाँडवों का अग्रज हूँ, यह जान कर मैं उनके प्राण कभी नहीं ले सकता हूँ, इतना तक नहीं समझती हैं। अतः मैंने माता को वचन दिया। उसके पाँच पुत्र आवश्य जीवित रहेंगे। माँ ने मेरी दानशीलता का उपयोग पंच पुत्रों के जीवन रक्षा के लिए काम में लाया। जबकि सब जानते हैं, कि कृष्ण के रहते पांचों पांडव का बाल भी बाँका नहीं हो सकता। मेरे जीवन की रक्षा का विचार किसी के मन में नहीं आया।
महाभारत की पूर्वसंध्या के समय मुझसे दान माँगने आए दीन-हीन भिक्षुक की कामना ने मुझे चकित कर दिया। मेरे शरीर के साथ जड़ित मेरी सुरक्षा कवच, स्वर्ण कवच और कुंडल मांगने वाल यह ब्राह्मण कौन है? यह कवच –कुंडल इसके किस काम का है?
वास्तव में, अर्जुन के पिता इंद्र ने मेरे दानवीरता का उपयोग अपने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए किया था। मुझे अजेय बनाने वाले कवच-कुंडल, छद्म ब्राह्मण रूप बना मांग लिया। यह था पिता-पुत्र प्रेम। कितना भाग्यशाली है अर्जुन। इंद्रा ने छल किया ताकि उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा हो सके। बदले में अपना अमोघ अस्त्र “शक्ति” एक बार प्रयोग करने की अनुमति दी। मेरे पिता आसमान में सात घोड़ों के रथ पर सवार रहे। सब पर अपना प्रकाश समान रूप से डालते रहे। पर मेरे ऊपर उनकी नज़र नहीं पड़ी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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