View Single Post
Old 11-12-2012, 11:57 PM   #11
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई

Quote:
Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava View Post
श्री rajnish Manga जी ; उत्तम ग़ज़ल पोस्ट करने का शुक्रिया किन्तु सेकेण्ड लास्ट पंक्ति के अन्त में प्रयुक्त शब्द ' शरर ' का औचित्य समझ में नहीं आया .
Reply
प्रिय डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी, गज़ल पढने और प्रतिक्रिया भेजने के लिये धन्यवाद. आपने बड़ा माकूल सवाल पूछा है. आपको बताना चाहूँगा कि मेरी एक पिछली गज़ल “कई रोज़ मेरी जानिब देखा न यार ने“ जो कि मैंने दिनांक १०/११/१०१२ को ‘महफ़िल’ फोल्डर के अन्तर्गत अपलोड की गयी थी. उसके साथ यह स्पष्ट कर दिया था कि रजनीश मंगा ‘शरर’ नजीबाबादी बकलम खुद यानि मैं खुद हूँ. अब से लगभग ३०-३५ बरस पहले जो गज़लें मैंने लिखीं उनमें शरर नजीबाबादी तखल्लुस लगाया करता था. वैसे मेरे प्रोफाइल में भी मेरे नजीबाबाद प्रवास का अंदाजा हो जाएगा. दरअस्ल, अपने नजीबाबाद प्रवास (१९६२ से १९७१) के दौरान ही मैंने कविता लिखना शुरू कर दिया था. मेरी पहली प्रकाशित कविता पं. जवाहर लाल नेहरु के सम्बन्ध में थी जो उनके स्वर्गवास (२७ मई,१९६४) के एक साल बाद छपी थी. तो इस प्रकार मैं आपकी दुआ से लगभग पिछले ५० बरस से शब्दों से अपने मोह को कविताओं (गज़लों एवं नज्मों सहित), कहानियों, निबन्धों आदि के ज़रिये कागज़ पर उतारता रहा हूँ और आप जैसे कदरदान कभी कभी उन पर दाद भी दे देते हैं.
अब मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूँ. आप कृपया “महफ़िल” फोल्डर के पृष्ठ ३ क्रमांक ५ पर अंकित गज़ल “कई रोज़ मेरी जानिब देखा न यार ने“ के नीचे गौर करेंगे तो पायेंगे कि वह गज़ल आपने भी पढ़ी थी और उसको पसंद भी किया था (यदि थैंक्स क्लिक करने से यही तात्पर्य निकलता है तो). ताज्जुब है कि आपने गज़ल के नीचे मेरे शरर नजीबाबादी तखल्लुस के बाबत लिखी वजाहत नहीं पढ़ी. उम्मीद है आपकी शंका दूर हो गयी होगी. धन्यवाद.

प्रेषक: रजनीश मंगा “शरर’ नजीबाबादी
rajnish manga is offline   Reply With Quote