Re: Dahej Pratha / दहेज-प्रथा
आजकल लोग दहेज को अपनी प्रतिष्ठा से जोड कर देखने लगे हैं , यानि जिसे जितना अधिक दहेज मिला उसकी उतनी ही ज्यादा हैसियत समझी जाती है । लोग सोचते हैं कि यदि वे धनवान हैं या उनका बेटा बहुत ऊँचे ओहदे पर है तो उन्हें ज्यादा दहेज मिलना चहिये , कई लोग तो दहेज को अपनी मजबूरी भी बता कर खुद की वकालत करते हैं जैसे- हमने अपने बेटे की पढाई पर बहुत खर्चा किया है , उसको प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में या बहुत बडे संस्थान/विदेश से पढाने में ्हमारा बहुत खर्चा हुआ है इसलिये बस हम कुछ सहायता लडकी के घरवालों से चाहते हैं..... दरअसल वे ये नहीं समझते कि यदि वास्तव में ही वे बहुत सक्षम हैं तब तो उन्हें बिल्कुल भी दहेज नहीं लेना चाहिये क्योंकि लेने वाला हमेशा छोटा होता है , दिया उसी को जाता है जो इस काबिल नहीं कि खुद अपने बूते अपने लिये चीजें खरीद सके या कमा सके।
वास्तव में देखा जाये तो दहेज प्रथा में वर पक्ष से ज्यादा गलती वधू पक्ष की होती है । लोग एक तो अपनी बेटियों को बोझ समझते हैं , ज्यादा शिक्षित नहीं करते और जब उन्हें कोइ उच्च पदस्थ या धनवान लड्का मिलता है तो वे चाहते हैं कि किसी भी तरह उनकी बेटी की शादी उससे करवा दी जाये और इसके लिये वे कोई भी कीमत अदा करने को तैयार होते हैं । फिर शुरु होता है अधिक बोली लगाने का दुश्चक्र ,जिस प्रकार से एक सेल्स मैन अपना सामन बेचता है तरह तरह के आकर्षक प्रलोभन देकर उसी प्रकार वर पक्ष को भी तरह तरह के प्रलोभन दिये जाते हैं । अब जिस व्यक्ति के पास इतने अधिक विकल्प होंगे वो भी आकर्षक प्रलोभनों के साथ तो जाहिर है वह खुद को राजा से कम तो नहीं ही समझेगा ।
यदि वधू पक्ष के लोग अपने में सुधार लायें तो निश्चित ही इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है , यदि लडकियों को शिक्षित किया जाये , और आत्मनिर्भर बनाया जाये तो उनमें व उनके परिवार में आत्मविश्वास जाग्रत होगा और उन्हें किसी के आगे गिडगिडाने और प्रलोभन देने की आवश्यकता कभी नहीं पडेगी ।
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