मित्रो। अभिषेकजी, प्रशासकीय कार्यों में इस कदर मुब्तिला रहते हैं कि अमूमन उन्हें अपना होशो-हवास दुरुस्त रखना मुश्किल हो जाता है। स्थिति आप सभी समझ सकते हैं। जो शख्स सदा दूसरों के बारे में सोचता रहता हो, उसे अपने होशो-हवास का ख़याल कैसा? काफी दिन से तमन्ना थी कि इस एक बड़े हिन्दी प्रेमी परिवार को खड़ा करने और उसे तकरीबन नंबर एक की मंजिल पर ला खड़ा करने के अनुपम कार्य के लिए अभिषेकजी को कुछ विशेष अनुभूति के रू-ब-रू कराया जाए। कभी अवसर नहीं मिला। गत दिनों मुझे मित्र रजनीशजी का एक सन्देश मिला और उसने मेरे दिमाग पर जैसे एक हथोड़ा बजा दिया। मैंने फ़ौरन अभिषेकजी को मैसेज किया कि इस बार का 'मेंबर ऑफ़ द वीक' मैं घोषित करूंगा, और आपको इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अभिषेकजी ने इसे जिस तरह बिना नानुकुर किए मान लिया, इससे मुझे कुछ आश्चर्य तो हुआ, लेकिन ज्यादा नहीं, क्योंकि मुझे पता है कि अभिषेकजी अगर किसी पर विश्वास करते हैं, तो पूरी तरह, वर्ना नहीं।
... तो दोस्तो। हाज़िर है इस बार का 'मेंबर ऑफ़ द वीक' ... ।
क्या कुछ जल्दी हो गया? अरे भाई, ऎसी भी क्या जल्दी है, रात अभी बाक़ी है।
मैं पूरे होशो-हवास में, सम्पूर्ण गर्वानुभूति के साथ, बड़ी बारीकी से इधर-उधर देख कर इस बार का 'मेम्बर ऑफ़ द वीक' घोषित करता हूं।
अभिषेकजी।
उम्मीद है, आप सभी सहमत होंगे। ... तो हो जाए एक जोरदार चीयर्स।