07-04-2012, 12:51 PM
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Re: किसी का प्यार जो मिले ...!
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Originally Posted by dr. Rakesh srivastava
पेचो ख़म ज़ुल्फ़ के , जो कोई खोलने निकले ;
बर्फ के बाट से , मेढक को तोलने निकले .
जिन्हें खुशफ़हमी थी , खुद के सिकंदर होने की ;
इश्क के मोर्चे से , बन के कलंदर निकले .
हाले दिल जिनके जरिये , तुमको हम सुनाते थे ;
वो ही , मुझसे ही , तुम्हे छीनने वाले निकले .
छांव को गेसुओं की , जल्द क्यों समेट लिया ;
अभी तो अपने इश्क के , न फ़साने निकले .
तू जो लौटा दे , कटे पंख , अगर फिर से मुझे ;
परिंदा फिर से ,मेरे इश्क का , उड़ने निकले .
किसी का प्यार जो मिले , तो जहाँ स्वर्ग बने ;
दिल अगर टूट जाये तो , यही नरक निकले
तू जनाज़े में मेरे , आने का यकीं तो दिला ;
देख फिर दम मेरा , किस तरह शान से निकले .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ (यू .पी. ),इंडिया .
(शब्दार्थ ~ पेचो ख़म = उलझाव/घुमाव और ऐठन ,
कलंदर = फ़कीर / अकेला )
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डॉक्टर साहब , बहुत ही खूब ! मुझे बेहद अफसोस है की आपकी ये रचना मै पढ़ने से चूक गया था |
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