26-01-2015, 07:42 PM
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Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!
हाजी अब्दुल अज़ीज़
राजस्थान से जब रोजी रोटी के लिये कोई व्यक्ति अरब देशों को जाता था तो इस आवागमन को मुसाफ़िरी के नाम से वर्णित किया जाता था. अपनी पहली मुसाफिरी के बाद अब्दुल अज़ीज़ ने शानदार दो तल्ले का मकान बनवा लिया था. डेढ़ दो लाख से कम लागत न आयी होगी. मजदूरी तो अपनी ही थी. माँ-बाप बेटे को दुआ देते न थकते थे. जितना ज़िन्दगी भर बाप न कमा सका, उससे अधिक तो बेटे ने दो वर्षों में ही सारे खर्चे निकाल कर बचा लिया था. घर खर्च भी तो भेजता था.
अगली मुसाफिरी में एक वर्ष रुकना हुआ. इस बार वह बेहद बीमार हो गया था. ऐसी हालत में उसने भारत लौटना ही मुनासिब समझा. वीसा वह साथ ही लेता आया था. इस बार वह अपने साथ बहुत सी नई नई चीजें लाया था जैसे – स्टीरिओ टेप, रिकॉर्ड प्लेयर, टीवी, कैमरा, घड़ियाँ, कपड़े आदि. यह सभी कुछ फॉरेन का सामान था. उसके मुताबिक़ इन सारी वस्तुओं से उसकी समृद्धि और सुरुचि का परिचय मिलता था. देसी वस्तुओं से वो रुतबा नहीं बनता जो इन विदेशी चीजों से बनता है. अच्छी हैसियत वाले हर व्यक्ति के पास यह वस्तुएं होना लाज़मी समझा जाता था वरना बाहर जाने का क्या फायदा?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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