Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!
उसका मन खिन्न हो गया. अब न तो स्टीरिओ उसे तसल्ली दे पाता था और न रिकॉर्ड चेंजर उसके दिल को बहला पाते. फिल्मों के साउंड ट्रेक भी अब उसकी हंसी उड़ाते लगते. पैसा धीरे धीरे चुकता जा रहा था. इन्हीं हालात में उसके मन की ऊब भी बढ़ती जा रही थी. इस बीच आमदनी के लिये उसने कई छोटे मोटे काम शुरू किये लेकिन उनसे सीमित आय ही हो पाती थी. असंतोष का घेरा उसे चारों ओर से जकड़े जा रहा था.
जब तक कोई वस्तु हासिल नहीं हो पाती, उसकी उम्मीद होती है, उसको हासिल करने के प्रयत्न मनुष्य करता है. और जब उसे प्राप्त कर लेता हैतो उसे बेपनाह ख़ुशी और संतोष हासिल होता है. इसके पश्चात इस ख़ुशी और संतोष की तीव्रता कम होती जाती है. यहाँ तक कि उसकी कुरेद तक नहीं रहती. लेकिन जब हासिल की हुई वस्तु हाथ से निकल जाती है अथवा उसके साथ जुड़ा हुआ हमारा सुख भंग हो जाता है तो जो चोट दिल पर पड़ती है, उसका प्रभाव देर तक रहता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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