Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!
आमदनी और खर्च में संतुलन बिगड़ता गया तो प्रतिष्ठा के प्रतीक बिकने लगे. गुब्बारे में बैठ कर साहसिक यात्रा अभियानों के बारे में यदि आपने पढ़ा हो तो आपने देखा होगा कि गैस कम हो जाने पर गुब्बारे के गेदोले पर रक्खे हुये रेत के बोरे नीचे गिराए जाते हैं ताकि गुब्बारे की उंचाई बढ़ाई जा सके या बरकरार रखी जा सके. हाजी अब्दुल अज़ीज़ ने भी अपने कीमती सामान यथा पैनासोनिक टू-इन-वन स्टीरियो, रिकॉर्ड चेंजर, कैमरा, घड़ियाँ, टेलीविज़न और अन्य प्रकार के इलेक्ट्रोनिक यंत्रों को धीरे धीरे औने-पौने दामों पर बेचना आरंभ कर दिया.
एक और जीवन में घटते साधनों का दबाव और दूसरी और बेहद शौक से खरीदी हुई वस्तुओं से वियोग का ग़म, इन दोनों बातों ने उसके दिलो-दिमाग को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था. दिमाग ने तो जैसे काम करना ही बंद कर दिया था और कभी कभी उसे यूँ लगता जैसे वह नदी की तेज धार की विपरीत दिशा में तैरने की कोशिश कर रहा है. जितना ही हाथ-पैर मारता उतना ही शैथिल्य उसमे व्याप्त होता जाता. उसका अंतस सुलगने लगता.
अब उसके सामने प्रमुख विचार यही था कि पैसा कहाँ से आये ? रोजी रोटी कैसे चलेगी ? बाकी सब कुछ गौण हो गया था. इसी उधेड़-बुन में अपने बाप को भी खरी खोटी सुनानी शुरू कर दी थी कि वह नकारा क्यों बैठा रहता है ?
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|