Re: कुछ यहाँ वहां से............
"जब कभी भी वो खाली होते थे तो मंदिर से सटे बाग में समय बिताने को आ जाया करते थे"..
"ओ.के"...
"कई बार जब खुश होते थे तो अपनी मर्ज़ी से तन्मय होकर कविता पाठ किया करते थे"..
"ओ.के"...
"बस!...उन्हीं की संगत में रहकर ये भी कुछ-कुछ तुकबन्दी करना सीख गया"...
"ओ.के"...
"शायरी की बारीकियाँ सीखने के बहाने उसने उनकी बेटी से भी नज़दीकियाँ बढा ली और उसी के कहने पर इसने भी बाकि साहित्यकारों की तरह अपना उपनाम रखने की सोची जैसे किसी ने अपने नाम के साथ 'चोटीवाला' तखलुस्स रखा था... तो किसी ने 'चक्रधर'... किसी ने 'बेचैन'...तो किसी ने 'लुधियानवी'
"ओ.के"...
"गाँव के बिगड़ैल लठैतों के संगत में लड़ते भिड़ते बल्लम चलाना भी सीख चुका था"...
"ओ.के"...
"सो!..'बल्लमधारी' से बढिया भला और क्या नाम होता?"...
"वाह!...क्या सटीक नाम चुना है उल्लू के चरखे ने?...घंटेश्वरनाथ 'बल्लमधारी' ...वाह-वाह"...
"अरे!...ये क्या?...बातों-बातों में पता ही नहीं चला कि कब हम उसकी बुराई करते-करते अचानक उसी का गुणगान करने लगे"...
"जी"...
"ध्यान रहे!...हमारा मकसद अपनी लेखनी के जरिए उसे नीचा दिखाना है ना कि ऊँचा उठाना"..
"ओह!.. ये तो मैंने सोचा ही नहीं था"...
"तो फिर सोचो और सोच-सोच के उसके ख़िलाफ़ ऐसी-ऐसी बातें लिखो कि सब दंग रह जाएँ"...
"लेकिन क्या लिखूँ?...बहुत सोचने के बाद भी कुछ समझ ही नहीं आ रहा है" मैँ माथे पे हाथ रख कुछ सोचता हुआ बोला...
"अरे!...इसमें सोचने वाली बात क्या है?...जो भाव दिल में उमड़-घुमड़ रहे हैँ...बस...सीधे-सीधे उन्हीं को अपनी लेखनी के जरिए कागज़ पे उतारते चले जाओ"..
"मगर यार!...सब का सब झूठ लिखने से कहीं लोग ना भड़क जाएं"..
"नहीं!...बिल्कुल झूठ नहीं...थोड़ी बहुत सच्चाई तो टपकनी ही चाहिए तुम्हारी लेखनी से"...
"वोही तो"..
"लेकिन ध्यान रहे कि तारीफ में जो कुछ भी लिखना ...कमज़ोर शब्दों में लिखना...ढीले शब्दों में लिखना "...
"वो भला क्यों?"...
"ओफ्फो!...इतना भी नहीं समझते?....दोस्त नहीं...वो दुश्मन है तुम्हारा"...
"हाँ"...
"सो!...ज़्यादा तारीफ अच्छी नहीं रहेगी हमारी सेहत के लिहाज से"..
"हाँ!...ये तो है"..
"तो क्या ये भी लिख दूँ कि कभी ये घंटेश्वरनाथ एक दम गाय के माफिक भोला और सीधा हुआ करता था?"...
"ठीक है!...लिख देना"बीवी अनमने मन से हामी भरते हुए बोली
"ये भी लिखना कि कैसे वो नेताओं के साथ रह-रह के उनके दाव...पैंतरे और गुर सब सीख गया है"..
"हाँ!..ये सब तो वो जान गया है कि कैसे पब्लिक को फुद्दू बना माल कमाया जाता है"..
"इतना चालू है कि कई बार कार्यक्रम संचालन के पैसे तक नहीं लेता है"..
"पैसे नहीं लेता है?...इसलिए वो चालू हो गया?"...
"हाँ"...
"मेरे हिसाब से तो ऐसे आदमी को चालू नहीं बल्कि बेवाकूफ कहा जाता है"..
cont............
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